तेरी बातें ही सुनाने आए, दोस्त भी दिल ही दुखाने आए

Siraj Mahi
Aug 04, 2024

जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए, कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए

अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर, चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला, वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है, कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त

तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई, मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त, तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त

किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक, देखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़', दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

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