'मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता'; वसीम बरेलवी के शेर

Siraj Mahi
Apr 30, 2024


झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए... और मैं था कि सच बोलता रह गया


मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश... ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी


शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ... कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे... तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे


आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है... भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है


वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए... ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता


वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी... किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता


मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा... अब इस के बा'द मिरा इम्तिहान क्या लेगा


मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता... किसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना

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