झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं, सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल, उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

मैं ने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह, तू मिरा ख़्वाब नहीं है जो बिखर जाएगा

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ, कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ, हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़, फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले

फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं, काँटे बे-कार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं, इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं

वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी, किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता

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