जहन्नम की आग से निजात दिलाएगा रमजान का आखिरी अशरा; कर लें ये काम
Siraj Mahi
Mar 27, 2024
बुनियाद इस्लाम के पांच बुनियादी सिद्धांतों में तौहीद, नमाज, हज और जकात के साथ रोजा भी शुमार है.
21 से 30 हदीसों में रमजान के तीन अशरों का जिक्र आता है. तीनों की बहुत अहमियत है. 21 से 30 रमजान तक तीसरा अशरा चेलेगा.
हदीस हजरत सलमान फारसी रजि. से रिवायत है कि प्रोफेट मोहम्मद स. के मुताबिक रमजान का पहला अशरा रहमत का है, दूसरा अशरा मगफिरत का और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से आजादी का है.
जहन्नम इस अशरे में अल्लाह के बंदे अल्लाह से जहन्नम की आग से पनाह मांगते हैं.
दस दिन यूं तो रमजान का पूरा महीना बहुत अहमियत वाला है, लेकिन आखिरी के दस दिनों के फजायल और ज्यादा हैं. प्रोफेट मोहम्मद स. रमजान के आखिरी अशरे में इबादत, शब बेदारी और जिक्र व फिक्र में और ज्यादा मुब्तिला हो जाते थे.
रात भर बेदार हजरत आइशा रजि. फरमाती हैं कि आखिरी अशरा शुरू हो जाता तो प्रोफेट मोहम्मद स. रात भर बेदार रहते और अपनी कमर कस लेते और अपने घर वालों को भी इबादत के लिए जगाते थे.
ऐतिकाफ रमजान के आखिरी अशरे की एक अहम खुसूसियत ऐतिकाफ है. आप स. रमजान के आखिरी अशरे में ऐतिकाफ फरमाते थे. ऐतकाफ वह अमल है जिसमें कोई शख्स दस दिनों के लिए या इससे कम दिनों के लिए मस्जिद में रहता है.
इबादत ऐतिकाफ के दौरान बंदा मस्जिद में ही इबादत करता है. इस दौरान वह मस्जिद में ही खाता-पीता और सोता है. इस अमल में इंसान बाहरी दुनिय से मतलब नहीं रखता.
लैलतुल कद्र रमजान के आखिरी अशरे की एक अहम फजीलत यह भी है कि इसमें एक ऐसी रात पाई जाती है, जो हजार महीनों से भी ज्यादा अफजल है. इस रात को लैलतुल कद्र की रात कहते हैं.
रात में इबादत इस रात में पूरी रात जाग कर अल्लाह की इबादत करनी होती है. इसी रात को कुरान मजीद जैसा अनमोल तोहफा इंसानियत को मिला था. इस रात की इतनी फजीलत है कि इस पर अल्लाह ने कुरान में एक सूरह ही नाजिल कर दी.