IIM-A के भवन को डिजाइन करने वाले भारतीय वास्तुकार को मिला ब्रिटेन का सर्वोच्च सम्मान
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IIM-A के भवन को डिजाइन करने वाले भारतीय वास्तुकार को मिला ब्रिटेन का सर्वोच्च सम्मान

रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (RIBA)  ने कहा कि 70 साल के करियर और 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के साथ 94 वर्षीय दोशी ने अपने अभ्यास और अपने शिक्षण दोनों के माध्यम से भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में वास्तुकला की दिशा को प्रभावित किया है.

 

बालकृष्ण दोशी, मशहूर भारतीय वास्तुकार

लंदनः मशहूर भारतीय वास्तुकार बालकृष्ण दोशी (Indian Architecture) को ‘रॉयल गोल्ड मेडल 2022’ (Royal Gold Medal 2022) प्रदान किया जाएगा, जो वास्तुकला के लिए दुनिया के सर्वोच्च सम्मानों में से एक है. रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (RIBA) ने यह घोषणा की है. आरआईबीए ने बृहस्पतिवार को कहा कि 70 साल के करियर और 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के साथ 94 वर्षीय दोशी ने अपने अभ्यास और अपने शिक्षण दोनों के माध्यम से भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में वास्तुकला की दिशा को प्रभावित किया है.
ताउम्र किए गए काम को मान्यता देने वाले रॉयल गोल्ड मेडल (Royal Gold Medal) को व्यक्तिगत रूप से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा अनुमोदित किया जाता है और इसे ऐसे व्यक्ति या लोगों के समूह को दिया जाता है, जिनका वास्तुकला की उन्नति पर महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है.

दोशी की इमारतों में है भारतीय संस्कृति की गहरी छाप 
आरआईबीए ने कहा कि उनकी इमारतों में भारत की वास्तुकला, जलवायु, स्थानीय संस्कृति और शिल्प की परंपराओं की गहरी छाप के साथ आधुनिकतावाद का भी संगम दिखता हैं. उनकी परियोजनाओं में प्रशासनिक और सांस्कृतिक सुविधाएं, आवास विकास और आवासीय भवन शामिल हैं. वह अपने दूरदर्शी शहरी नियोजन और सामाजिक आवास परियोजनाओं के साथ-साथ भारत में और दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में एक अतिथि प्राध्यापक के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं.

दोशी की कार्य अनुभव और पढ़ाई  
वर्ष 1927 में पुणे में, फर्नीचर निर्माण से जुड़े परिवार में जन्मे, बालकृष्ण दोशी ने जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, बंबई से पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने पेरिस में वरिष्ठ डिजाइनर (1951-54) के रूप में ले कॉर्बूजियर के साथ और अहमदाबाद में परियोजनाओं की निगरानी के लिए भारत में काम किया था. उन्होंने लुई कान के साथ भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के निर्माण के लिए एक सहयोगी के रूप में काम किया और दोनों ने एक दशक से ज्यादा वक्त तक साथ काम करना जारी रखा. उन्होंने 1956 में दो वास्तुकारों के साथ अपना स्वयं का ‘वास्तुशिल्प’ अभ्यास स्थापित किया. 

यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान हैः दोशी 
दोशी ने अपनी इस बड़ी जीत के बारे में सुनकर कहा, ‘‘मैं हैरत मंे हूं और इंग्लैंड की महारानी से ‘रॉयल गोल्ड मेडल’ हासिल करने की बात से सम्मानित महसूस कर रहा हूं. यह बहुत बड़ा सम्मान है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘पुरस्कार मिलने की खबर ने 1953 में ले कॉर्बूजियर के साथ काम करने के दिनों की यादें ताजा कर दीं, जब उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल मिलने की खबर मिली थी. यह मेरे छह दशकों के अभ्यास का सम्मान है. मैं अपनी पत्नी, अपनी बेटियों और सबसे महत्वपूर्ण मेरी टीम और संगत माय स्टूडियो के सहयोगियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता हूं.’’ 

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