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सैय्यद अब्बास मेहदी रिजवी: पिछले कई दशकों से इराक़ से जब भी कोई ख़बर बैनुलअक़वामी सतह पर बाहर आयी तो उसने आलमे इंसानियत को न सिर्फ़ ग़म दिए बल्कि सोचने पर भी मजबूर किया कि क्या इराक़ी अवाम के मुक़द्दर में सिर्फ़ दर्द ही दर्द है, चाहे इराक़ी सद्र सद्दाम हुसैन के दौर में वहां के अवाम के हुक़ूक़ पामाल होनें की ख़बरें हो या फिर अमेरिका की मदाख़लत के ज़माने में इराक़ियों पर ज़्यादतियों की ख़बरे. और तो और 2014 में ISIS जैसी दहशतगर्द तंज़ीम के वजूद में आने के बाद जो ख़बरें आयीं उसे पढ़ कर और सुनकर इंसानियत का कलेजा कांप उठा.
ISIS ने ज़ुल्मों सितम की इंतेहा कर दी, कभी दर्जनों इराक़ियों को ज़िंदा जला दिया गया, कभी बहती नहर में बाजमात धकेल दिया गया, कभी क़तार में बिठा कर सर क़लम कर दिए गए, मर्द तो मर्द वहां की औरतों को भाी नहीं बख़्शा गया, इराक़ी औरतों की बाज़ारों में खुलेआम ख़रीदो फ़रोख़्त होने लगी. इराक़ के बहुसंख्यक शियों के साथ साथ अल्पसंख्यक ईसाइयों और इज़दियों को भी इन मज़ालिम का सामना करना पड़ा.
ISIS जब अपने शबाब पर था और पूरे इराक़ को तबाह कर देना चाहता था, इराक़ी आर्मी भी अपना पूरा दम ख़म लागाने के बावजूद उसके नापाक इरादों को क़ाबू में नहीं कर पा रही थी, ऐसे हालात में इराक़ के सबसे बुज़ुर्ग और आलातरीन आलिमे दीन मरजा-ए-आली क़द्र सैय्यद अली सीस्तानी ने इराक़ी अवाम को हुक्म दिया कि वो मुल्क की दिफ़ा, अपने वजूद की दिफ़ा, अपनी तहज़ीब की दिफ़ा और अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों की दिफ़ा के लिए घरों से बाहर निकलें, सीस्तानी साहब के फ़तवे के फ़ौरन बाद ही इराक़ की सड़के नौजवानों के हुजूम से छलकने लगीं.
आलम ये था कि 10 किलोमीटर के दायरे में भी अवाम का सैलाब समां नहीं रहा था, इसका असर ये हुआ कि मूसिल से लगातार आगे बढ़ कर राजधानी बग़दाद फ़तह करने का दावा करने वाला ISIS का लशकर भाग खड़ा हुआ, यहां तक कि उसका ख़लीफ़ा अबू बक्र बग़दादी जो मूसिल की मस्जिद में खुलेआम ख़ुत्बा देता था उसका कोई अता पता नहीं है, मेरी जानकारी में कई बार उसके मरने की ख़बर आ चुकी है. हालांकि तब से अब तक ISIS छुप छुप कर हमले करता है, लेकिन जिस अंदाज़ में उसकी आमद इराक़ में हुयी थी और उसके जो इरादे थे वो सब ख़ाक हो गए. आपको याद दिला दें कि अमेरिका जैसी सुपर पावर ने ये कहा था कि 30 साल तक ISIS को इराक़ से कोई हटा नहीं सकता,
दुनिया ने इस मंज़र को देखा, एक बुज़ुर्ग की एक अपील के असर को देखा,शायद यही वजह है कि आज पोप फ़्रांसिस उसी बुज़ुर्ग का शुक्रिया अदा करने के लिए अपने चार रोज़ा दौरे पर इराक़ पहुंचे हैं. नजफ़ में पोप और आयतुल्लाह सीस्तानी की मुलाक़ात हुई, मुलाक़ात के दौरान दोनो रुहानी पेशवाओं ने अम्ने आलम की अपील की है, इन दो बुज़ुर्ग और मोतबर हस्तियों की मुलाक़ात से न सिर्फ़ इराक़ बल्कि सारी दुनिया में अम्न इत्तेहाद की उम्मीद जगी है, पोप इतवार को मूसिल भी जाएंगे जहां वो एक चर्च की तक़रीब में हज़ारों ईसाइयों से ख़िताब करेंगे.
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