नई दिल्ली/ सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: इसराइली सेना और फ़िलिस्तीनी हमास के बीच लगातार पाँचवें दिन जंग जारी है. इसराइल ने गाज़ा में अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी है, वहीं फ़िलिस्तीनी इसराइल में रॉकेट दाग रहे हैं. इसराइल के पीएम बिन्यमिन नेतन्याहू ने कहा है कि इसराइली सेना गाज़ा में जबतक ज़रूरी हुआ फौजी कार्रवाई करती रहेगी. जुमे की सुबह उन्होंने एक बयान में कहा कि "हमास को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी". वहीं हमास के फ़ौजी तर्जुमान ने कहा है कि इसराइली फ़ौज ने अगर ज़मीनी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया तो वो उसे "कड़ा सबक" सिखाने के लिए तैयार हैं.


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फ़िलिस्तीनी और इसराइल के दरमियान ये अचानक से होने वाली कोई जंग नहीं है. बल्कि ये विवाद सदियों पुराना है. तो सवाल उठता है कि आखिर यरुशलम दुनिया के लिए इतना अहम क्यों हैं ? यरुशलम के नाम पर ज़रा सी बात में  खून-खराबे क्यों हो जाते हैं ? इस सवाल का जवाब यरुशेलम की तारीख़ में छिपा हुआ है. बहुत ही आसान ज़बान में हम आपको इस विवाद के हर पहलू के बारे में समझाते हैं. यरुशलम दुनिया के तीन बड़े मज़हबों की अक़ीदत से जुड़ा है. यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्म के लिए यरुशलम एक पाक शहर है.


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इतिहासकारों का ये मानना है कि आज से करीब 5,000 साल पहले यरुशलम में इंसानों ने बसना शुरू किया. आज से 3 हजार साल पहले यहूदियों के किंग डेविड ने यरुशलम को अपने यहूदी इक़्तेदार की राजधानी बनाया. किंग डेविड के बाद उनके बेटे सोलोमन ने यरुशलम में पहला मज़हबी मकाम बनाया. ये यहूदियों का धर्मस्थल था. यहूदियों की तारीख़ में किंग सोलोमन का बड़ा मक़ाम है . आज से 1 हज़ार 987 साल पहले यरुशलम में ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था. इस तरह ईसाईयों के लिए भी यरुशलम एक बहुत अहम मज़हबी मक़ाम है. इस वाक़्या के करीब 600 साल बाद यरुशलम मुस्लिमों के लिए भी एक बहुत अहम मज़हबी मकाम बन गया. क्योंकि इस्लाम के मुताबिक पैगंबरे आज़म ने यरुशलम के अल अक्सा मस्जिद से ही मेराज पर गए थे.


अल अक्सा मुस्जिद मुसलमानों का पहला किब्ला भी था. किब्ला यानि वो दिशा जिसका रुख करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं. बाद में किब्ला मक्का का काबा हो गया. अब सवाल उठता है कि दूसरी आलमी जंग तक इज़रायल जब वजूद में नहीं था तो इज़रायल बना कैसे ?...और यरुशलम पर कब्ज़े को ईसाईयों, मुसलमानों और यहूदियों ने हमेशा अपनी आन बान और शान से जोड़ कर क्यों देखा है. इतिहासकारों का मानना है कि सबसे पहले यरुशलम, यहूदियों के राजा किंग डेविड की राजधानी थी. लेकिन ईसाई और इस्लाम धर्म के विस्तार के बाद यूरोप और एशिया में यहूदी लगातार कमजोर होते गए . यहूदी लोग पूरी दुनिया में बिखर गए और उन पर जुल्क का सिलसिला शुरु हो गया.


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19वीं शताब्दी में थियोडौर हैरत्ज़ल नाम के एक यहूदी विचारक थे. उन्होंने यहूदी कौमियत की नींव रखी थी. इसके बाद पूरी दुनिया के यहूदियों ने ये हलफ लिया कि यरुशलम उनका मदरलैंड है और उन्हें दोबारा यरुशलम पर कब्ज़ा करना है. इसके बाद बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में पहले विश्व युद्ध के दौरान यरुशलम  पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया और 700 साल के बाद यरुशलम गैर-मुसलमानों के हाथों में चला गया और यहीं से इजराइल के वजूद की कहानी शुरू होती है . कहा जाता है कि ब्रिटेन ने यहूदियों को यरुशलम  में बसाने का लालच देकर पहले विश्व युद्ध में यहूदियों की हिमायत हासिल कर ली. बहुत ही चालाकी से ब्रिटेन ने अरब देशों को भी यरुशलम का लालच दिया था


आज के इसराइल को तब फिलिस्तीन कहा जाता था और उसमें अरब के मुसलमानों की आबादी थी. लेकिन बहुत मुनज़्ज़म तरीके से यहूदियों ने यरुशलम की तरफ हिजरत की, धीरे-धीरे पूरे इलाके में यहूदियों की आबादी बहुत बढ़ गई और अरब के मुसलमान कमज़ोर होते गए . वर्ष 1947 में United Nations ने इसराइल को एक मुल्क के तौर पर मंज़ूरी दे दी, लेकिन यरुशलम  को एक इंटरनैशनल शहर के तौर पर मान्यता दी गई. ताकि सर्वधर्म समभाव बना रहे . तब यरुशलम पर इजराइल का कंट्रोल नहीं था.


अगर आप 1947 से पहले और बाद के नक्शे को देख कर समझने की कोशिश करेंगे तो समझ में आएगा कि कैसे धीरे धीरे फिलिस्तीन गायब होता गया और इजराइल वजूद में आता गया.  साल 1947 से पहले फिलिस्तीन ही नक्शे पर था लेकिन 1947 में जब इजराइल की स्थापना हुई तो मानचित्र में ये बदलाव आया. दक्षिणी हिस्से में इजराइल मजबूत था. और यरुशलम के साथ ज़्यादातर उत्तरी हिस्से पर फिलिस्तीन का कब्जा था. 1948 में अरब देशों और इजराइल के बीच हुई पहली जंग के बाद फिलिस्तीन के कब्ज़े वाला इलाका और कम हो गया हालांकि यरुशलम के कुछ हिस्सों पर तब भी फिलिस्तीन का कब्ज़ा था. साल 1967 में अरब देशों और इजराइल के बीच 6 दिन की एक और जंग के बाद मिस्र के कुछ हिस्सों पर भी इजराइल ने कब्जा कर लिया हालांकि बाद में एक समझौते के तहत इजराइल ने ये हिस्सा मिस्र को वापस कर दिया, आज की तारीख़ का नक्शा उठाकर देखेंगे तो फिलिस्तीन वेस्टबैंक और ग़ाज़ा तक ही सिमट कर रह गया है.


इजराइल की स्थापना के बाद कई सालों के जंग के बाद मिस्र और जॉर्डन समेत कुछ मुस्लिम मुल्कों ने इजराइल को मंज़ूरी भी दे दी लेकिन यरुशलम में मौजूद धर्मस्थलों का विवाद अब तक सुलझा नहीं है यरुशलम में एक ऊंचे इलाके में Dome Of Rocks है, यहूदियों का मानना है कि यहां पर किंग सोलोमन ने पूजा स्थल बनवाया था और इसी के पास अल अक्सा मस्जिद है जहां से हुज़ूर मेराज पर गए थे  यहां पर एक Western Wall भी है जो यहूदी धर्म के लिए काफ़ी अहम मानी जाती है. आज भी दुनिया इस सबसे पुराने विवाद का हल नहीं निकाल पाई है.


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