चीन में फैल रहे कोरोना वायरस का शिकार हो रहे हज़ारों लोगों की जान बचाने के लिए हिंदुस्तानी डॉक्टर ने अपनी ज़िंदगी दांव पर रहे हैं।
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नई दिल्ली : एक डॉक्टर को कभी भी आपकी ज़ात या मज़हब से मतलब नही होता उसके लिए सभी एक समान होते है. चीन के झेजियांग शहर में मौजूद मध्य प्रदेश के रतलाम के लाल डॉक्टर अमिश व्यास को भी मौत डरा नहीं सकी.जिनको पता है कि मौत उनके सामने है लेकिन वो अपने इरादे से एक कदम भी पीछे नहीं हटे।जब कोरोना वायरस के डर से लोग चीन से भाग रहे हैं तब अमिश व्यास ने कहा कि वो चीन में कोरोना वायरस से मुतास्सिर मरीजों को छोड़ कर नहीं आ सकते. इस वक्त चीन में उनकी जरूरत है.
एक मां कर रही है बेटे का इंतजार
इधर हिंदुस्तान में रतलाम के पैलेस रोड इलाके में रहने वाली डॉ. अमिश की मां कविता व्यास बेटे की सलामती को लेकर फिक्रमंद हैं. रो रो कर उनका बुरा हाल है. वो अपनी मां से हर रोज बात करते हैं, उन्हें तसल्ली देते हैं लेकिन लौटने के सवाल पर उनका एक ही जवाब है. फर्ज पहले है बाकी सब बाद में. कोरोना वायरस से जूझ रहे चीन के झेजियांग में वो मेडिकल ड्यूटी पर तैनात हैं. उन्होंने 2012 में चीन से MBBS की पढ़ाई की थी. इसके बाद वो दिल्ली और रतलाम के रेलवे अस्पताल में अपनी खिदमात दे चुके हैं.
डॉक्टर अमिश का परिवार
अमिश ने अपने अहलेख़ाना और जीवन के आगे अपने कर्तव्य को चुना है. रतलाम में रहने वाली मां अकेली है फिर भी वो हिम्मत से डटे हैं. उनकी मां कविता व्यास 58 साल की हैं. वो रतलाम के गुजराती समाज उच्च माध्यमिक विद्यालय में टीचर रह चुकीं हैं. शौहर का 2015 में इंतेकाल हो चुका है और वो अपनी बुजुर्ग सास यशोदा व्यास के साथ रहती हैं. जाहिर है इस उम्र और परेशानियों में उन्हें भी डॉक्टर बेटे की जरूरत है, हालांकि बेटे का मौकिफ उन्होंने भी समझा है.
डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी याद आई
डॉक्टर अमिश व्यास की कहानी ने 77 साल पहले चीन के लोगों की खिदमत करने वाले डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस की अमर कहानी की याद दिला दी. दूसरे चीन-जापान जंग (1937-1945) के दौरान उनकी खिदमात के लिए चीन उन्हें आज भी एहतेराम से याद करता है. जंग के दौरान चीन ने मेडिकल खिदमात के लिए हिंदुस्तान से डॉक्टरों को भेजने की अपील की थी. भारत से जिन पांच डॉक्टरों को भेजा गया था उनमें डॉक्टर कोटनिस भी थे. कोटनिस बिना सोए कई दिन तक चीनी फौजियों का इलाज करते रहे. इस वजह से उन्हें मिर्गी का दौरा पड़ा और 32 साल की उम्र में उनका इंतेक़ाल हो गया. 2017 में चीन ने डॉ. कोटनिस की याद में एक डाक टिकट भी जारी किया था.