Kissa Kursi Ka: दो बैलों की जोड़ी से हाथ के पंजे तक का कांग्रेस का सफर.. BJP को कैसे मिला कमल?
Advertisement
trendingNow12213043

Kissa Kursi Ka: दो बैलों की जोड़ी से हाथ के पंजे तक का कांग्रेस का सफर.. BJP को कैसे मिला कमल?

Lok Sabha Chunav: सियासी दलों को चुनाव निशान मिलने की कहानी भी दिलचस्प है. बीजेपी-कांग्रेस जो चुनाव निशान आज हैं वह पहले नहीं थे. किस्सा कुर्सी का में आज इसके बारे में जानते हैं.

Kissa Kursi Ka: दो बैलों की जोड़ी से हाथ के पंजे तक का कांग्रेस का सफर.. BJP को कैसे मिला कमल?

Election Symbols History: इलेक्शन में चुनाव चिन्ह काफी अहम होते हैं. वोटर्स को इससे उम्मीदवारों को पहचानने में आसानी होती है. हालांकि, अगर कोई पार्टी टूटती है तो चुनाव चिन्ह को लेकर खींचतान भी खूब होती है. देश के इतिहास में ये कई बार हो चुका है कि पार्टियों के टूटने पर चुनाव चिन्ह पार्टी के दो गुटों में से किसी एक को दिया गया या फिर चुनाव चिन्ह को जब्त ही कर लिया गया है. आइए जानते हैं कि देश की प्रतिष्ठित पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी को अपना चुनाव चिन्ह कैसे मिला?

क्यों महसूस हुई चुनाव चिन्ह की जरूरत?

दरअसल, 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने महसूस किया कि जिस देश में साक्षरता दर महज 20 फीसदी हो वहां चुनाव में चुनाव चिन्ह बहुत महत्वपूर्ण हैं. इसके बाद फैसला किया गया कि चुनाव चिन्ह पहचानने योग्य और परिचित होने चाहिए. इसके अलावा वह किसी भी धार्मिक या भावनात्मक जुड़ाव वाली चीज नहीं होनी चाहिए. जैसे- गाय और मंदिर आदि. उस वक्त जिन पार्टियों नेशनल पार्टी या क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी उनके सामने चुनने के लिए 26 चुनाव चिन्ह रखे गए.

ये भी पढ़ें- मछली के कांटे BJP के गले में न फंस जाएं? बंगाल में 2019 के चुनाव में ऐसा ही हुआ था

दो बैलों की जोड़ी से हाथ के पंजे तक का सफर

1951-52 में पहले चुनाव से पहले, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह कुछ और था. लेकिन 17 अगस्त, 1951 को कांग्रेस को दो बैलों की जोड़ी चुनाव निशान दिया गया. आज जो हाथ का पंजा चुनाव निशान कांग्रेस का है वह कभी ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (रुईकर ग्रुप) को दिया गया था.

कांग्रेस में विभाजन की कहानी

हालांकि, 1969 में जब कांग्रेस दो भागों कांग्रेस (O) और कांग्रेस (R) में बंट गई तब कांग्रेस (O) को एस. निजलिंगप्पा ने लीड किया. वहीं, कांग्रेस (R) को जगजीवन राम ने नेतृत्व दिया. इसी ग्रुप को इंदिरा गांधी का समर्थन मिला हुआ था. फिर 11 जनवरी, 1971 को चुनाव आयोग ने फैसला किया कि जगजीवन राम की कांग्रेस ही असली कांग्रेस है.

ये भी पढ़ें- पता है, दोपहर 12.39 पर ही गृह मंत्री अमित शाह ने क्यों किया नामांकन?

'बछड़ा और गाय' चुनाव निशान कैसे मिला?

लेकिन जब बाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लग गई और दो बैलों की जोड़ी वाला निशान फ्रीज हो गया. उसे कांग्रेस (O) और कांग्रेस (R) दोनों में से कोई भी इस्तेमाल नहीं कर पाया. इसके बाद 25 जनवरी, 1971 को चुनाव आयोग ने कांग्रेस (O) को 'महिला द्वारा चलाया जाने वाला चरखा' और कांग्रेस (R) को 'बछड़ा और गाय' चुनाव निशान दिया.

इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत

हालांकि, 70 के दशक के आखिर में कांग्रेस (R) में विभाजन हो गया. अब उसमें एंटी इंदिरा ग्रुप बन गया. इसको देवराज उर्स और के. ब्रह्मानंद रेड्डी ने लीड किया. फिर 2 जनवरी, 1978 को इंदिरा गांधी इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया. 'बछड़ा और गाय' का चुनाव निशान उनके ग्रुप को देने की मांग की. लेकिन चुनाव आयोग ने मना कर दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसमें दखल देने से मना कर दिया.

जब कांग्रेस (I) को मिला हाथ का पंजा

फिर 2 फरवरी, 1978 को चुनाव आयोग ने इंदिरा ग्रुप के नेतृत्व वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (I) को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दे दी और उसे हाथ पंजा चुनाव निशान दे दिया. इसके बाद 1979 में, चुनाव आयोग देवराज उर्स ग्रुप से भी 'बछड़ा और गाय' चुनाव निशान ले लिया और उन्हें 'चरखा' चुनाव निशान दिया. इस पार्टी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (U) के नाम से राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता मिली.

दीपक से कमल तक का सफर

बीजेपी को भी चुनाव निशान कमल मिलने की कहानी बहुत दिलचस्प है. 7 सितंबर, 1951 को भारतीय जनसंघ (BJS) को 'दीपक' चुनाव निशान मिला था. 1977 तक भारतीय जनसंघ ने चुनाव निशान दीपक का इस्तेमाल किया. फिर 1977 में भारतीय जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हो गया. लेकिन फिर 1980 में जनता पार्टी का भी विभाजन हुआ. फिर 6 अप्रैल, 1980 को वो नेता फिर मिले जो भारतीय जनसंघ के टाइम साथ में थे. उन्होंने अपना नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अपना नेता बनाने का ऐलान किया. इसे बाद भारतीय जनता पार्टी बनी. लेकिन पुरान चुनाव निशान उन्हें नहीं मिल पाया. चुनाव ने बीजेपी को चुनाव निशान कमल दिया.

Trending news