जानें कैसे अशोक स्तंभ बना राष्ट्रीय प्रतीक, क्या दर्शाते हैं उस पर बने ये चार शेर
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जानें कैसे अशोक स्तंभ बना राष्ट्रीय प्रतीक, क्या दर्शाते हैं उस पर बने ये चार शेर

Knowledge Section: राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का भी एक हिस्सा है. इसके अलावा भारतीय मुद्रा पर भी इसके चिन्ह को छापा जाता है. भारतीय पासपोर्ट पर भी प्रमुख रूप से अशोक स्तंभ को ही अंकित किया गया है. वहीं आधिकारिक पत्राचार के लिए किसी भी व्यक्ति या अन्य किसी निजी संगठन व संस्थान को इस प्रतीक को उपयोग करने की अनुमति नहीं है.

जानें कैसे अशोक स्तंभ बना राष्ट्रीय प्रतीक, क्या दर्शाते हैं उस पर बने ये चार शेर

Knowledge Section: हाल ही में भारत के नए संसद भवन के शीर्ष पर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को लगाया गया है. सम्राट अशोक के शासन काल में बने इस स्तंभ में चार सिंहों को चार अलग-अलग दिशाओं में दर्शाया गया है. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नए संसद भवन के शीर्ष पर स्थापित 6.5 मीटर लंबे व 9,500 किलोग्राम वजनी कांस्य से निर्मित राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ का अनावरण कर राष्ट्र को समर्पित किया गया है. आज हम आपको यह बताएंगे कि यह स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक कैसे बना, किस नेता इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाने का सुझाव दिया था. इसके अलावा हम यह भी जानेंगे कि अशोक स्तंभ में चार अलग दिशाओं में बैठे ये चार शेर ऐसा क्या जाहिर करते हैं कि इस स्तंभ को भारतीय गणराज्य के प्रतीक को तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा.

कहां-कहां किया जाता है अशोक स्तंभ के चिन्ह का इस्तेमाल 
बता दें कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और सरकारी संस्थाओं द्वारा अलग-अलग जगहों पर किया जाता है. इस स्तंभ को सम्राट अशोक ने 280 ईसा पूर्व में बनवाया था. यह स्तंभ इस समय वाराणसी में स्थित सारनाथ संग्रहालय में रखा हुआ है. इस स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था. यह प्रतीक भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का भी एक हिस्सा है. इसके अलावा भारतीय मुद्रा पर भी इसके चिन्ह को छापा जाता है. भारतीय पासपोर्ट पर भी प्रमुख रूप से अशोक स्तंभ को ही अंकित किया गया है. वहीं आधिकारिक पत्राचार के लिए किसी भी व्यक्ति या अन्य किसी निजी संगठन व संस्थान को इस प्रतीक को उपयोग करने की अनुमति नहीं है.

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जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया था प्रस्ताव
भारत के आजाद होने से मात्र 24 दिन पहले यानी 22 जुलाई 1947 को जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा के सामने एक प्रस्ताव रखा गया था कि देश के नए ध्वज और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए नया डिजाइन तैयार किया जाना चाहिए. इसके अलावा नेहरू ने यह भी सुझाव दिया कि बेहतर होगा अगर हम इन चीजों को डिजायन करते वक्त मौर्य सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासनकाल की चीजों को भी सम्मिलित करें. उन्होंने कहा था कि आधुनिक भारत को अपने इस समृद्ध और चमकदार अतीत के आदर्शों और मूल्यों को अवश्य सामने लाना चाहिए.

जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में इस बारे में आगे कहा कि, "चूंकि मैने सम्राट अशोक का जिक्र किया है तो यह बताना चाहूंगा कि सम्राट अशोक का काल भारतीय इतिहास में ऐसा दौर था जिसे ध्यान रखना चाहिए, जिसमें हमने अंतरराष्ट्रीय तौर पर छाप छोड़ी है. ये केवल एक राष्ट्रीय दौर नहीं था बल्कि ऐसा समय था जबकि हमने भारतीय राजदूतों को दूर-दूर के देशों में भेजा था और वे साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं बल्कि शांति, संस्कृति और सद्भाव के प्रतीक बनकर गए थे."

आखिर क्या जाहिर करते हैं अशोक स्तंभ पर लगे ये चार शेर
सारनाथ में रखा अशोक स्तंभ 7 फुट से अधिक ऊंचा है. उसमें दहाड़ते हुए एक जैसे शेर चारों दिशाओं में स्तंभ के ऊपर बैठे हुए हैं. वास्तव में अशोक स्तंभ ताकत, साहस, गर्व और आत्मविश्वास को जाहिर करता है. दरअसल, मौर्य शासनकाल के ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट अशोक की ताकत को दर्शाते थे. हालांकि, जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाने की बात की गई तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई थी.

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