Delhi History: दिल्ली का 'असली इतिहास' आया सामने! इंद्रप्रस्थ में मिलीं गणेशजी और देवी गजलक्ष्मी की मूर्तियां
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Delhi History: दिल्ली का 'असली इतिहास' आया सामने! इंद्रप्रस्थ में मिलीं गणेशजी और देवी गजलक्ष्मी की मूर्तियां

ASI Excavation In Delhi: 11वीं सदी से पहले दिल्ली (Delhi) क्या थी इसके बारे में ज्यादातर इतिहासकारों ने नहीं बताया. पर अब एएसआई (ASI) की टीम इसकी खोज में 3,300 साल पीछे तक जा चुकी है. महाभारत काल के सबूतों की खोज जारी है.

Delhi History: दिल्ली का 'असली इतिहास' आया सामने! इंद्रप्रस्थ में मिलीं गणेशजी और देवी गजलक्ष्मी की मूर्तियां

Indraprastha Excavation: कभी-कभी आप सोचते होंगे कि ये असली इतिहास (Real History) क्या होता है. असली इतिहास उसे कहते हैं, जिसे जानबूझकर देश के कुछ इतिहासकारों (Historians) ने छिपाए रखा. असली इतिहास वो होता है, जिसको मुगल (Mughal) प्रेमी इतिहासकारों ने काल्पनिक घटनाएं कह दिया. असली इतिहास वही होता है जिसको एक खास एजेंडे के तहत हमेशा दबाए रखा जाता है. आज हम दिल्ली के उसी इतिहास की बात करने वाले हैं. हम इसकी सिर्फ बात नहीं करेंगे बल्कि इससे जुड़े सबूत भी दिखाएंगे. ज्यादातर इतिहासकारों ने दिल्ली के इतिहास को 11वीं शताब्दी से माना है. उससे पहले दिल्ली में क्या था, इसके बारे में इन लोगों ने बहुत कुछ नहीं लिखा है. इतिहासकारों के मुताबिक, 11वीं शताब्दी से पहले के सबूत की गैरमौजूदगी की वजह से उन्होंने उसके बाद के इतिहास की ही कड़ियां जोड़ी हैं. देश के इतिहासकारों ने दिल्ली के इतिहास की जो कड़ियां जोड़ी, पहले हम आपको वो बताते हैं.

कब से शुरू हुआ दिल्ली का इतिहास?

इतिहासकारों का कहना है कि दिल्ली का इतिहास राजपूत काल के दौरान महरौली से शुरू हुआ था. 11वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल ने महरौली इलाके में सबसे पहले 'लालकोट का किला' बनवाया था. इसके बाद 12वीं शताब्दी में राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने इसका विस्तार करके 'किलाराय पिथौरा' बनवाया. वर्ष 1192 में 'तराईन' मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान का युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान हार गए. इस युद्ध में ये किला नष्ट हो गया था. इसके बाद 14वीं शताब्दी में खिलजी काल में 'सीरी किले' का निर्माण हुआ. 14वीं शताब्दी में ही 'तुगलकाबाद' अस्तित्व में आया, जिसे तुगलक काल में बनाया गया था. 'जहांपनाह' दिल्ली का चौथा मध्यकालीन शहर था, जिसे 14वीं शताब्दी में ही 'मोहम्मद बिन तुगलक' ने बनाया था. इसे आज आप मालवीय नगर, पंचशील पार्क, खिड़की एक्सटेंशन के नाम से जानते हैं.

किसने बनवाया पुराना किला?

फिर इसके बाद 14वीं शताब्दी में फिरोजाबाद भी बसाया गया, जिसे आज 'फिरोज शाह कोटला' के नाम से जानते हैं. इसे फिरोज शाह तुगलक ने बसाया था. इतिहासकारों के मुताबिक, 16वीं शताब्दी में हुमायूं ने 'पुराना किला' बनवाया था. 17वीं शताब्दी में यहीं पर शाहजहां ने शाहजहांनाबाद को बसाया था, इसे आप पुरानी दिल्ली के नाम से जानते हैं. और आखिर में अंग्रेजों ने 20वीं सदी में नई दिल्ली बसाया. अंग्रेजों ने ही राष्ट्रपति भवन, संसद, इंडिया गेट वगैरह बनवाया था.

11वीं सदी से पहले दिल्ली क्या थी?

तो इतिहासकारों के मुताबिक, दिल्ली का इतिहास 11वीं शताब्दी से शुरू हुआ और फिर अंग्रेजों पर आकर खत्म हो गया. लेकिन 11वीं शताब्दी से पहले दिल्ली क्या थी, इसके बारे में उनके पास भी कोई जवाब नहीं है. जवाब ना होने के दो कारण हो सकते हैं, पहला ये कि वो जवाब तलाशना नहीं चाहते थे, और दूसरा ये हो सकता है कि उन्होंने एक एजेंडे के तहत ऐसा किया.

इंद्रप्रस्थ पर टूट रहा इतिहासकारों का भ्रम

इतिहासकारों ने कुछ भी लिखा हो, लेकिन हिंदुओं की हमेशा से मान्यता रही, कि दिल्ली को हजारों वर्ष पहले इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था. ये शहर महाभारतकालीन है, और ये पांडवों की राजधानी थी. इस इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने MYTH यानी भ्रम कहा. लेकिन ऐसे इतिहासकारों का भ्रम अब टूटने लगा है. भारतीय पुरातत्व विभाग ने पुराना किला में इंद्रप्रस्थ की खोज करीब 6 महीने पहले शुरू की थी. अब उसके सबूत मिलने लगे हैं. ASI को मिट्टी के बर्तनों के कुछ अवशेष मिले हैं, जो महाभारत काल के हैं. इन बर्तनों में स्लेटी रंग की कलाकृति बनी हुई है. यही नहीं ASI को 3000 हजार वर्ष पुराने अवशेष भी मिल रहे हैं. ASI की ये खोज, दिल्ली का नया इतिहास रचने जा रही है.

असली इतिहास आएगा सामने

इतिहास की किताबों में दिल्ली के बारे में चाहे जो लिखा हो, लेकिन यहां की जमीन अपना असली इतिहास जानती है.. ये दिल्ली है ये सब जानती है. चंद इतिहासकारों ने भले ही दिल्ली को मुगलों की शान के साथ जोड़ा हो, भले ही उन्होंने दिल्ली की पहचान को मुगल आक्रमणकारियों के ही इतिहास का हिस्सा माना हो, लेकिन अब दिल्ली की पहचान से जुड़े ऐतिहासिक सच, सामने आने लगे हैं.

ASI को मिले अहम सबूत

दिल्ली को महाभारत काल में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ कहा गया. लेकिन हमारे देश के कुछ इतिहासकारों ने इस बात को काल्पनिक कहा. इंद्रप्रस्थ के होने की सच्चाई को, कल्पना कहने वालों के लिए, पिछले साल Archeological Survey of India यानी भारतीय पुरातत्व विभाग ने एक मुहिम शुरू की. इस मुहिम के तहत दिल्ली के पुराना किला इलाके में इंद्रप्रस्थ के होने या ना होने को लेकर खुदाई की गई. ये पहली बार था, जब दिल्ली के किसी खास स्थान पर इंद्रप्रस्थ के होने के सबूत तलाशे जा रहे थे. महीनों की मेहनत रंग लाई और इस खुदाई में ASI को हजारों वर्ष पुरानी हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं. पुराना किला की जमीन से भगवान गणेश, देवी गजलक्ष्मी, भगवान विष्णु समेत कई देवी देवताओं की मूर्तियां मिली हैं. ये मूर्तियां हजारों वर्ष पुरानी है. ये गुप्त काल से लेकर राजपूत काल और मुगल काल की हैं. ये वही दिल्ली है जिसके बारे में भ्रम फैलाया गया कि इसे मुगलों ने बसाया है. लेकिन सच्चाई इन इतिहासकारों के झूठ से अलग है.

ASI ने इस जगह को इसलिए चुना था, क्योंकि पुराना किला, मुगलों की सत्ता का केंद्र बताया जाता रहा है. हुमायूं से लेकर शेरशाह सूरी तक, लगभग सभी ने अपनी सत्ता यहीं से चलाई थी. इस जगह पर वर्ष 1955 और 1969 में भी ASI ने खुदाई की थी, लेकिन तब शायद मुगलों का इतिहास ही खोजा रहा था. हालांकि खुदाई के दौरान मौर्यकालीन अवशेष भी मिले थे, लेकिन देश के इतिहासकारों ने दिल्ली के मुगल इतिहास को सच और हजारों वर्ष पुराने भारतीय इतिहास को कल्पना ही कहा. हालांकि अब भारत के असली इतिहास की तलाश शुरू हुई है, तो चौंकाने वाले सबूत मिलने लगे हैं। ASI के मुताबिक कुल मिलाकर दिल्ली में 9 संस्कृतियों का वास है.

ASI की टीम अभी तक अपनी जांच में 3 हजार 300 वर्ष पीछे जा चुकी है, अभी भी लगातार असली इतिहास को खोजने का काम जारी है. ASI, महाभारत कालीन अवशेष की तलाश कर रही है, और उसके सबूत मिलने लगे हैं. खुदाई के दौरान ASI को एक ऐसी जगह मिली है, जहां भीषण बाढ़ के आने के निशान मिले हैं. माना जा रहा है कि ये बाढ़ महाभारत काल खंड से जुड़ी हुई है. करीब 3 हजार वर्ष पहले इंद्रप्रस्थ में यानी पांडवों की राजधानी में, भीषण बाढ़ आई थी. इसी के बाद से पांडवों के वंशजों ने अपनी राजधानी, उत्तरप्रदेश के कौशांबी को बना दिया था. पुरातत्वविद ही नहीं कुछ इतिहासकार उम्मीद जता रहे हैं कि इंद्रप्रस्थ की खोज के दौरान मिले 3 हजार वर्ष पुराने बाढ़ के निशान, इसी महाभारत कालीन ऐतिहासिक घटना के हैं.

अगर ASI के दावे सही हैं तो तैयार हो जाइए, दिल्ली के नए इतिहास को पढ़ने के लिए. इस इतिहास में केवल मुगल आक्रमणकारियों का ही नहीं, बल्कि महाभारत काल का भी जिक्र किया जाएगा. जिन इतिहासाकरों ने दिल्ली के इतिहास को केवल मुगलों के इतिहास जोड़ा था, उन्हें भी इस नए इतिहास को पढ़ना और याद रखना पड़ेगा.

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