Pashupati Paras News: अब सारी निगाहें पशुपति पारस के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. अब पशुपति पारस के सामने चार रास्ते हैं. पहला- जिद छोड़कर एनडीए में रहते हुए जो भी मिले, उसे खुशी-खुशी स्वीकार करें. दूसरा- महागठबंधन के साथ जाएं. तीसरा- एकला चलो की राह चुनें. चौथा- तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास करें.
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Pashupati Paras News: लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार बिहार एनडीए में सीटों का बंटवारा हो गया. सोमवार (18 मार्च) की शाम को बीजेपी के दिल्ली स्थित मुख्यालय से बिहार एनडीए की सीट शेयरिंग का ऐलान किया गया. सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लेकर मीडिया में जिस तरह की खबरें चल रही थीं वो सच साबित हुईं. बीजेपी अब बड़े भाई की भूमिका में आ चुकी है. तो वहीं चाचा पशुपति पारस पर भतीजे चिराग पासवान भारी पड़ गए हैं. एनडीए में चिराग को 5 सीटें तो वहीं पारस के हाथ कुछ भी नहीं लगा है. जानकारी के मुताबिक, बीजेपी ने जो फॉर्मूला तैयार किया है उसमें पशुपति पारस को राज्यपाल बनाने की योजना है, हालांकि इस प्रस्ताव को पारस पहले ही ठुकरा चुके हैं. उन्होंने साफ कहा था कि वह हाजीपुर सीट से ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में अब सारी निगाहें पशुपति पारस के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. अब पशुपति पारस के सामने चार रास्ते हैं. पहला- जिद छोड़कर एनडीए में रहते हुए जो भी मिले, उसे खुशी-खुशी स्वीकार करें. दूसरा- महागठबंधन के साथ जाएं. तीसरा- एकला चलो की राह चुनें. चौथा- तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास करें.
सबसे पहले चौथे विकल्प की बात करते हैं. इसमें पशुपति पारस ऐसे दलों को साथ लाएं जो अभी तक एनडीए और महागठबंधन दोनों का हिस्सा नहीं हैं. इन दलों में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, मुकेश सहनी की वीआईपी, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और मायावती की बसपा शामिल है. जातीय समीकरणों के लिहाज से ये सभी दल बड़े खास हैं. इनमें दलितों का प्रतिनिधित्व पशुपति पारस और मायावती कर रही हैं. मल्लाह और निषाद वोटरों को मुकेश सहनी के जरिए साधा जा सकता है. मुस्लिम समाज में ओवैसी बड़े नेता हैं, तो वहीं पप्पू यादव के सहारे यादव वोटबैंक में भी सेंधमारी की जा सकती है. अगर इन दलों को साथ लाकर तीसरा मोर्चा गठन किया जाए तो किसी भी गठबंधन को कड़ी टक्कर दी जा सकती है. हालांकि, इसमें भी मायावती की पार्टी बसपा ने अकेले लड़ने की घोषणा कर रखी है.
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तीसरे ऑप्शन की संभावना कम जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जब लोजपा को एनडीए से बाहर किया गया था तो चिराग पासवान ने तीसरे विकल्प का ही इस्तेमाल किया था. वहीं राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पारस के लिए पहले और दूसरे विकल्प में से किसी एक को चुन सकते हैं. सीट शेयरिंग से पहले पारस ने जो तेवर दिखाए थे, उसे देखकर लगता है कि वह दूसरे विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं यानी महागठबंधन के साथ जा सकते हैं. पिछले हफ्ते यह भी खबर आई थी कि तेजस्वी यादव और राजद की ओर से पशुपति कुमार पारस को महागठबंधन में शामिल होने के लिए न्यौता दिया गया था. सूत्रों के अनुसार, पशुपति पारस को अपने खेमे में लाने के लिए महागठबंधन बेचैन है. उन्हें हाजीपुर और समस्तीपुर सीट भी दी जा सकती है, लेकिन नवादा को लेकर पेंच फंस रहा है. इसे राजद अपने पास रखना चाहती है. अब सवाल ये है कि पारस अगर महागठबंधन में जाते हैं तो NDA का कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?
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इस सवाल का उत्तर अभी देना थोड़ा जल्दबाजी होगी. दरअसल, पशुपति पारस ने अभी तक अपनी सियासी ताकत का प्रदर्शन नहीं किया है. जबतक रामविलास पासवान जिंदा थे, पार्टी को वो लीड कर रहे थे. उनके निधन के बाद पारस ने लोजपा का बंटवारा किया और 5 सांसद लेकर मोदी सरकार में मंत्री बन गए. सियासी जानकारों का तो ये भी कहना है कि रामविलास के निधन के बाद चिराग को उनका मंत्रालय मिलना था, लेकिन जेडीयू ने खेल कर दिया था. फिलहाल केंद्र में मंत्री बनने के बाद से पारस का बिहार से संबंध भी खत्म हो गया. उन्होंने ना तो कोई रैली की ना ही अपने जाति के वोटरों का सम्मेलन, जिसमें आई भीड़ उनकी ताकत को दिखाती. इतना ही नहीं पारस ने अलग पार्टी तो बना ली लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा. वहीं चिराग ने अकेले अपनी पार्टी का विस्तार किया और चुनाव में अकेले लड़कर तकरीबन 6 फीसदी वोट भी हासिल किया. इतना ही नहीं पिछले साल हुए नगालैंड विधानसभा चुनाव में पहली बार एलजेपी (रामविलास) को दो सीटों पर जीत मिली थी और वो 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. यही वजह है कि बीजेपी ने उनको ज्यादा तवज्जो दी.