Pashupati Paras: पशुपति पारस के सामने अब चार विकल्प, चौथा तो NDA और INDIA दोनों को दे सकता है तगड़ी टक्कर
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Pashupati Paras: पशुपति पारस के सामने अब चार विकल्प, चौथा तो NDA और INDIA दोनों को दे सकता है तगड़ी टक्कर

Pashupati Paras News: पशुपति पारस ने आज यानी मंगलवार (19 मार्च) की सुबह मोदी सरकार से इस्तीफा भी दे दिया है. दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने इसकी घोषणा भी कर दी है. पारस ने अभी तक महागठबंधन में जाने को लेकर कुछ नहीं बताया है.

पशुपति पारस

Pashupati Paras Future Politics: बिहार की राजनीति में बीते ढ़ाई महीने से जबरदस्त उथल-पुथल देखने को मिल रही है. जनवरी महीने में नीतीश कुमार के हृदय परिवर्तन से सियासी पारा चढ़ा रहा तो पूरी फरवरी चिराग पासवान सुर्खियों में रहे. अब मार्च में पशुपति पारस पर सभी की निगाहें टिकी हैं. दरअसल, नीतीश कुमार की वापसी के बाद से बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग का पेंच इतना ज्यादा उलझ गया था, जिसे सेट करने में बीजेपी आलाकमान को ढ़ाई महीने लग गए. प्रदेश की कुल 40 लोकसभा सीटों में सभी साथियों को संतुष्ट करना बड़ा कठिन काम है. इसी गुणा-गणित में रूठने-मनाने का एक लंबा दौर देखने को मिल रहा. आखिरकार सोमवार (18 मार्च) की शाम को बीजेपी ने सीट शेयरिंग का ऐलान कर ही दिया. बीजेपी की ओर से जो फॉर्मूला दिया गया, उससे राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को एनडीए में तगड़ा झटका उस वक्त लगा है. एनडीए में उनको एक भी सीट नहीं मिली. 

इससे पारस काफी ज्यादा नाराज हो गए हैं और एनडीए से बाहर जाने का विचार कर रहे हैं. पशुपति पारस ने आज यानी मंगलवार (19 मार्च) की सुबह मोदी सरकार से इस्तीफा भी दे दिया है. दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने इसकी घोषणा भी कर दी है. पारस ने अभी तक महागठबंधन में जाने को लेकर कुछ नहीं बताया है. उन्होंने कहा कि वह पटना में अपनी पार्टी के नेताओं संग बैठक करेंगे और पार्टी जो कहेगी वही कदम उठाएंगे. आगे के भविष्य के लिए वह अपनी पार्टी के नेताओं के संग विचार-विमर्श करेंगे. पारस के अगले कदम पर टिकी हुई हैं. अब पशुपति पारस के सामने चार रास्ते हैं. पहला- जिद छोड़कर एनडीए में रहते हुए जो भी मिले उसे खुशी-खुशी स्वीकार करें. दूसरा- महागठबंधन के साथ जाएं. तीसरा- एकला चलो की राह चुनें. चौथा- तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास करें. 

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पहला विकल्प अब असंभव लग रहा है, क्योंकि उन्होंने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया है. दूसरे विकल्प की काफी चर्चा हो रही है. महागठबंधन में शामिल राजद और कांग्रेस सहित वामदलों के नेता अब पारस पर डोरे डालने में लगे हैं. चुनाव से ठीक पहले मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने के लिए तेजस्वी की ओर से भी पारस को तवज्जो दी जा रही है. सूत्रों के अनुसार, महागठबंधन में पारस को 2 सीटें (हाजीपुर और समस्तीपुर) दी जा सकती हैं. हालांकि, नवादा को लेकर पेंच फंसा हुआ है. नवादा से सांसद चंदन सिंह पारस गुट का हिस्सा हैं वहीं तेजस्वी इस सीट को अपने पास रखना चाहते हैं. 

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पारस तीसरा विकल्प भी चुन सकते हैं, क्योंकि अपनी राजनीतिक ताकत आजमाने का इससे बेहतर दूसरा कोई विकल्प नहीं है. लालू का साथ छोड़ने के बाद रामविलास पासवान और एनडीए से बाहर निकाले जाने के बाद चिराग पासवान भी ऐसा कर चुके हैं. पशुपति पारस ने अभी तक अपनी सियासी ताकत का प्रदर्शन नहीं किया है. केंद्र में मंत्री बनने के बाद से वह ज्यादातर समय तो दिल्ली में ही रहते थे, इससे बिहार की राजनीति से कटते चले गए. इतना ही नहीं पारस ने अलग पार्टी तो बना ली लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक कोई चुनाव नहीं लड़ा. इसके ठीक उल्टा चिराग पासवान बिहार में पसीना बहाते रहे. एनडीए से बाहर रहते हुए उन्होंने हर एक चुनाव को अकेले लड़ा और सभी में तकरीबन 6 फीसदी वोट भी हासिल किया. यही नहीं पिछले साल हुए नगालैंड विधानसभा चुनाव में पहली बार चिराग की पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी और वो 8 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. यही वजह है कि बीजेपी ने उनको ज्यादा तवज्जो दी है. 

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पारस अगर चौथे विकल्प का इस्तेमाल कर लें तो किसी का भी गेम बिगाड़ सकते हैं. इसमें पशुपति पारस ऐसे दलों को साथ लाएं जो अभी तक एनडीए और महागठबंधन दोनों का हिस्सा नहीं हैं. इन दलों में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, मुकेश सहनी की वीआईपी, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और मायावती की बसपा शामिल है. जातीय समीकरणों के लिहाज से ये सभी दल बड़े खास हैं. इनमें दलितों का प्रतिनिधित्व पशुपति पारस और मायावती कर रही हैं. मल्लाह और निषाद वोटरों को मुकेश सहनी के जरिए साधा जा सकता है. मुस्लिम समाज में ओवैसी बड़े नेता हैं, तो वहीं पप्पू यादव के सहारे यादव वोटबैंक में भी सेंधमारी की जा सकती है. तीसरे मोर्चे को सीटें भले ही ना मिलें, लेकिन यह किसी को भी हराने का काम कर सकता है.

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