बिहार को ‘टेकुआ’ की तरह सीधा कर देता अगर मेरे पास ये होता, जब जीतन राम मांझी का छलका दर्द
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बिहार को ‘टेकुआ’ की तरह सीधा कर देता अगर मेरे पास ये होता, जब जीतन राम मांझी का छलका दर्द

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का वह दर्द बाहर आ गया जिसे वह इतने दिनों से दिल में दबाए बैठे थे. 19 फरवरी 2015 को उनके मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ऐसे में जीतन राम मांझी अपने इस दर्द को इतने दिनों तक छुपाते रहे लेकिन अब उन्होंने खुलकर इस पर बात की है.

(फाइल फोटो)

नालंदा: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का वह दर्द बाहर आ गया जिसे वह इतने दिनों से दिल में दबाए बैठे थे. 19 फरवरी 2015 को उनके मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ऐसे में जीतन राम मांझी अपने इस दर्द को इतने दिनों तक छुपाते रहे लेकिन अब उन्होंने खुलकर इस पर बात की है. उन्होंने दावा किया कि वह कुछ दिन और बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर होते तो प्रदेश को टेकुआ की तरह सीधा कर देते. बता दें कि उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में उनको केवल दो साल और सीएम की कुर्सी पर रहने का मौका मिलना चाहिए था तो बिहार की तस्वीर कुछ अलग होती. 

मांझी नालंदा में एक कार्यक्रम में पहुंचे थे और यहां ही उनका यह छुपा दर्द छलक उठा. उन्होंने यहां साफ कहा कि पिछड़ी जातियां 4 मंत्रों के सहारे ही आगे बढ़ सकती है. उन्होंने कार्यक्रम में आगे कहा कि उनके पास अगर उस वक्त 50 एमएलए की ताकत होती तो आज उन्हें कोई पद से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. ऐसे में अगर वह सीएम होते तो बिहार में ढेर सारे बदलाव देखने को मिलते. 

उन्होंने केंद्र सरकार पर आरक्षण को खत्म करने की साजिश रचने का इल्जाम लगाते हुए कहा कि हम लोगों को ही इसके खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी. इसके साथ ही उन्होंने निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की व्यवस्था का शगुफा भी छोड़ दिया. 

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उन्होंने आगे कहा कि संविधान को कितान भी अच्छा बना दीजिए अगर उसको चलाने वाले अच्छे और बेहतर प्रशासक नहीं होंगे तो हालत तो बिगड़ ही जाएगी. उन्होंने कहा कि आज देश को चलाने वाले बड़ी कंपनियों का प्राइवेटाइजेशन कर रहे हैं ऐसे में जब तक निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था नहीं होगी हमारे बच्चों को नौकरी नहीं मिलेगी. 

जीतन राम मांझी दो दिन पहले ही दिल्ली में अमित शाह से मिले थे इसके बाद राजनीतिक हलकों में कई तरह के कयास लगाए जाने लगे थे. इसके साथ ही आपको बता दें कि उसी दिन नीतीश कुमार भी दिल्ली में थे और विपक्षी एकता कोमजबूत करने की जुगत में लगे हुए थे लेकिन यहां मांझी और नीतीश की मुलाकात नहीं हुई. 

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