MKTY के बल पर बीजेपी का आधार खिसकाने की तैयारी, नीतीश कुमार का मिशन यूपी प्लान Decode
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MKTY के बल पर बीजेपी का आधार खिसकाने की तैयारी, नीतीश कुमार का मिशन यूपी प्लान Decode

बिहार में बीजेपी जेडीयू का आधार खिसकाने में जुटी है तो अब नीतीश कुमार की पार्टी ने भी यूपी में बीजेपी को मजा चखाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. टीम ललन सिंह में जिन चेहरों को तहरजीह दी गई है, उनमें पूर्वाचल के बाहुबली नेता धनंजय सिंह का नाम भी शामिल है.

नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार

बिहार में बीजेपी जेडीयू का आधार खिसकाने में जुटी है तो अब नीतीश कुमार की पार्टी ने भी यूपी में बीजेपी को मजा चखाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. टीम ललन सिंह में जिन चेहरों को तहरजीह दी गई है, उनमें पूर्वाचल के बाहुबली नेता धनंजय सिंह का नाम भी शामिल है. उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. धनंजय सिंह की एंट्री हुई और केसी त्यागी को आउट कर दिया गया. माना जा रहा है कि पूर्वांचल में नीतीश कुमार ने धनंजय सिंह का कद बढ़ाकर बीजेपी की टेंशन को बढ़ा दिया है. जेडीयू का प्लान यूपी में MKTY समीकरण के बल पर बीजेपी को हराने का है. आगे की खबर में जानिए नीतीश का प्लान MKTY क्या है. 

यूपी में धनंजय सिंह होंगे जेडीयू का बड़ा चेहरा 

जेडीयू ने जौनपुर के सांसद रहे बाहुबली नेता धनंजय सिंह को आगे बढ़ाकर अपने सियासी जनाधार को बढ़ाने का दांव चला है. इसके साथ ही जेडीयू की कोशिश यूपी में ठाकुर और कुर्मी समुदाय का नया समीकरण बनाने का रहेगा. धनंजय सिंह ठाकुर हैं और नीतीश कुमार कुर्मियों के बड़े नेता. धनंजय सिंह सांसद रह चुके हैं और कई बार विधायक भी चुने गए हैं. ठाकुर बिरादरी में धनंजय सिंह की तूती बोलती है. 2022 के विधानसभा चुनाव की ही बात करें तो जिस मल्हानी सीट से धनंजय सिंह ने चुनाव लड़ा था, वहां बीजेपी की जमानत जब्त हो गई थी. यहां सपा प्रत्याशी की जीत हुई थी. यूपी में मल्हानी ही इकलौती सीट थी, जिस पर जेडीयू अपनी जमानत बचा पाई थी.

जौनपुर से जेडीयू से चुनाव लड़ सकते हैं धनंजय 

पिछले दिनों जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही थी. अगर दोनों दलों में गठबंधन हो जाता है तो यादव वोट भी नीतीश कुुमार के साथ आ जाएंगे. ऐसे में जेडीयू जौनपुर संसदीय सीट पर अपनी दावेदारी ठोक सकती है और धनंजय सिंह को चुनाव लड़ा सकती है. जौनपुर लोकसभा सीट अभी बसपा के पास है और श्याम सिंह यादव यहां से सांसद हैं. पूर्व में सपा सांसद रहे परसनाथ यादव का निधन हो चुका है. 2019 में सपा ने यहां बसपा को समर्थन दिया था और 2024 में वह जेडीयू का समर्थन कर सकती है.

ठाकुर वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं बाहुबली नेता 

जेडीयू की रणनीति यह है कि धनंजय सिंह के जौनपुर से चुनाव लड़ने से बीजेपी के ठाकुर वोटों में बड़ी सेंधमारी की जा सकती है. इसके अलावा कुर्मी वोटों के जुगाड़ का जिम्मा नीतीश कुमार पर रहेगा तो यादव और मुसलमान वोट तो अखिलेश यादव के पास हैं ही. हालांकि कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों की जीत से सामाजिक समीकरण में बदलाव का संकेत मिला है. यह भी देखना होगा कि नीतीश कुमार बिहार में कुर्मियों के बड़े नेता हैं तो क्या यूपी में उनका जादू चलने वाला है, क्योंकि यहां पर पहले से ही बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल के रूप में कुर्मियों का नेता खड़ा कर रखा है. इस तरह यूपी के कुर्मी बीजेपी के कोर वोटर माने जाते हैं और कुर्मियों को योगी सरकार से लेकर मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया है. 

यूपी के कुर्मी बहुल इन जिलों पर नीतीश की नजर ​

यूपी में जिन लोकसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय निर्णाक वोटर हैं, उनमें संत कबीर नगर, मिर्जापुर, बरेली, सोनभद्र, उन्नव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, बाराबंकी, अकबरपुर, कानपुर, एटा और लखीमपुर खीरी आदि शामिल हैं. इन सीटों पर कुर्मी समुदाय ही चुनाव का रुख तय करता है. नीतीश कुमार की नजर इन्हीं सीटों पर टिकी हुई है और इन सीटों पर समाजवादी पार्टी भी जेडीयू को बैकअप दे सकती है.

बिहार के नीतीश क्या यूपी में दिखा पाएंगे कमाल?

यह भी देखना होगा कि क्या एक साल से भी कम समय में इन जिलों में नीतीश कुमार अपना जनाधार बना पाते हैं या नहीं, क्योंकि एक राज्य में किसी समुदाय का बड़ा नेता होना अलग बात है लेकिन दूसरे राज्य में यह अलग बात होती है. मुलायम सिंह यादव या लालू प्रसाद यादव को ही देख लीजिए. दोनों अपने अपने राज्यों में यादवों के सबसे बड़े नेता रहे लेकिन दोनों को एक दूसरे के प्रदेशों में कभी तवज्जो नहीं मिल पाई. एक बात और भी गौर करने वाली होगी कि क्या धनंजय सिंह ठाकुर वोटों को अपनी ओर आकर्षित कर पाते हैं या नहीं, क्योंकि यूपी में ठाकुर वोट कुछ स्थानीय समीकरणों को छोड़कर पिछले कुछ चुनावों से योगी आदित्यनाथ के पक्ष में इंटैक्ट हुए हैं.

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