इस गांव के बुजुर्गों से बात करने पर पता चला कि लगभग 250 वर्ष पूर्व इस गांव में कुछ दांगी समाज के लोग रहते थे. जब होली के दौरान एक महिला के पति की मृत्यु हो गई थी. उस व्यक्ति की अर्थी उठी और गांव के उस स्थान तक आते-आते महिला ने भी प्राण त्याग करने की ठान ली थी.

गांव वालों का कहना है कि महिला इतनी दैवीय शक्ति वाली थी कि उसके शरीर में स्वयं अग्नि उत्पन्न हो गई. प्राण त्याग के अंतिम समय पर महिला ने गांव वालों को दो बातें कही. जिसमें पहली कि इस गांव में अब कभी होली नहीं मनाई जाएगी और दूसरी अपनी पुत्री के बारे में कहा कि कोई जूठे बर्तन या किसी प्रकार के गलत काम नहीं कराएंगे.

लोगों का कहना है कि उस महिला के मरने के कुछ ही दिन बाद उसकी पुत्री से लोग झूठे बर्तन और काम करवाने लगे. यह देख महिला ने फिर अग्नि उत्पन्न की और अपनी बेटी को भी उसमें समा ले गई. गांव में आज भी दोनों मां-बेटी की समाधि मौजूद है. उसी स्थान को सती स्थान मंदिर के नाम से लोग जानते हैं जो काफी शक्तिशाली भी है.

गांव की बुजुर्ग महिला और ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें याद भी नहीं है कि इस गांव में कभी होली मनाई गई थी. हमारे पूर्वजों ने भी बताया कि कभी इस गांव में होली नहीं मनाई गई है.

गांव के लोगों का कहना है कि कुछ साल पूर्व गांव के ही एक व्यक्ति ने होली के दिन मालपुआ और पूरी बनाने के लिए कढ़ाई में तेल डाला था. उसके बाद जैसे ही उसने मैदा डाला, तेल से जबरदस्त छिड़काव हुआ और घर के छप्पर में आग लग गई. उसी व्यक्ति के घर का छप्पर पूरी तरह से जल गया.

लोगों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति उस दिन होली मनाना चाहता है, उसके साथ बहुत बड़ी दुर्घटना होती है. इस गांव की बेटी दूसरे घर जाती है, तो वहां वह होली मना सकती है. लेकिन इस गांव का कोई बेटा चाहे वह दिल्ली में ही क्यों न रहता हो, वह होली के दिन किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं मना सकता है.

इस गांव में होली के त्योहार पर अन्य दिनों की तरह ही लोग साधारण भोजन बनाते और खाते हैं. गांव के लोग से पूछे जाने पर बताया कि हम लोग वैशाख के समय विशुआ के दिन पुआ और पकवान बनाते हैं और होली खेलते हैं.

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