क्या दोराहे पर खड़ा है दलित वोटर, माया से मोहभंग पर साइकिल या कमल में किसे सौंपेगा कमान
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क्या दोराहे पर खड़ा है दलित वोटर, माया से मोहभंग पर साइकिल या कमल में किसे सौंपेगा कमान

Lok Sabha Chunav 2024: आखिर क्या वजह है कि दलित वोटरों को सपा और बीजेपी दोनों साधने में जुटे हैं. क्या बसपा के परंपरागत वोटरों का पार्टी से मोहभंग हो रहा है. जिस पर अन्य दल डोरे डालने की कवायद में जुटे हैं. 

क्या दोराहे पर खड़ा है दलित वोटर, माया से मोहभंग पर साइकिल या कमल में किसे सौंपेगा कमान

Lok Sabha Chunav 2024: बसपा का कोर वोटर माने जाने वाले दलित मतदाताओं पर सपा ही नहीं बीजेपी की भी नजरें हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर इसको लेकर जुबानी जंग भी देखने को मिली. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्या वजह है कि दलित वोटरों को सपा और बीजेपी दोनों साधने में जुटे हैं. क्या बसपा के परंपरागत वोटरों का पार्टी से मोहभंग हो रहा है. जिस पर अन्य दल डोरे डालने की कवायद में जुटे हैं. 

लोकसभा चुनाव के तीन चरणों के मतदान के बाद अब बाकी बची 54 सीटों पर राजनीतिक दलों के बीच सियासी संग्राम तेज हो गया है. सबसे ज्यादा रार दलित वोटरों को लेकर है. बसपा के सामने अपने कॉडर वोट बैंक बचाने की चुनौती है, इसके लिए पार्टी पोल खोलो अभियान चलाने जा रही है, तो अन्य दल इसमें सेंधमारी की तैयारी में हैं. 

दलितों को बसपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. साल 1984 में बसपा की स्थापना हुई. 1993 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और  मायावती प्रदेश की पहली दलित मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद से दलित वोटर बसपा के परंपरागत वोटरों में शामिल हो गए.  2007 में बसपा को 30.43 फीसदी वोट मिले. जिसके दम पर बसपा 206 सीटें लेकर प्रचंड बहुमत से सरकार में आई. 

लेकिन समय के साथ बसपा का जनाधार लगातार गिरता चला गया. 2012 विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर गिरकर 25.91 फीसदी  हो गया और वह 80 सीटों पर सिमट गई. 2017 में बसपा को 22.23 प्रतिशत वोट मिले और वह 19 सीटें ही जीत पाई. 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा को 13 प्रतिशत से भी कम वोट मिले जबकि प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 20 फीसदी से ज्यादा है. इसके बाद अन्य दल बसपा से छिटक रहे दलित वोटरों को साधने की कोशिश में जुट गए. 

लोकसभा चुनाव में भी बसपा का ग्राफ गिरता गया. 2009 में बसपा को 27.4 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 20 सीटें जीती थीं. इसके बाद 2019 में पार्टी का वोट शेयर 19.6 फीसदी पर आ गया और उसकी सीटों की संख्या शून्य हो गई. 2019 में सपा के साथ चुनाव लड़ने पर उसे 19.43 फीसदी वोट मिले और 10 सीटों पर जीत हासिल हुई. 

बसपा के सामने खिसकते जनाधार पर ब्रेक लगाने के साथ ही कॉडर वोट बचाने की भी चुनौती है. हालिया समय में कई नेता पार्टी से या तो खुद बाहर हो चुके हैं या उनको बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. अभी मायावती ही एक मात्र बसपा का बड़ा चेहरा हैं. हालांकि मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को आगे करने की कोशिश की लेकिन यह दांव काम नहीं किया है. 

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