यूपी के सीएम रहे कमलापति त्रिपाठी, इंदिरा ने आलोचना की तो मिनटों में छोड़ा रेल मंत्री का पद, फिर भी पीएम पद के लिए पीठ में नहीं घोंपा खंजर
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2161354

यूपी के सीएम रहे कमलापति त्रिपाठी, इंदिरा ने आलोचना की तो मिनटों में छोड़ा रेल मंत्री का पद, फिर भी पीएम पद के लिए पीठ में नहीं घोंपा खंजर

कमलापति त्रिपाठी अपने तरह के एक मात्र नेता हुए जिनको सकारात्मक रूप से याद किया जा सकता है. वो राजनीति की एक ऐसी शख्सियत थे जिनके जुड़े किस्से कुछ न कुछ सिखाते हैं.

kamlapati tripathi

कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं की लिस्ट में एक से एक नेता शामिल हैं जिनकी देशभर में इज्जत भी बहुत है. आज ऐसे ही एक कद्दावर नेता की बात करेंगे जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे और केंद्र में रेल मंत्री बनकर रेलवे को भी अपनी सेवाएं दीं. हम बात कर रहे हैं कमलापति त्रिपाठी की जो अपने तरह के एक मात्र नेता हुए जिनको सकारात्मक रूप से याद करने की कई वजहें हैं. कमलापति त्रिपाठी राजनीति की एक ऐसी शख्सियत रहे जिनसे जुड़े किस्से कुछ न कुछ सिखाते ही हैं. 

रेलवे को दी सेवा 
अपना राजनीति करियर स्वतंत्रता आंदोलन से शुरू करने वाले कमलापति त्रिपाठी अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने से कभी नहीं चूके. कई-कई बार जेल भी गए. पहली बार साल 1937 में वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए. फिर कई साल तक विधायक बने रहे. साल 1952 में सूचना और सिंचाई मंत्री का उन्होंने कार्यभार संभाला. ये एक ऐसा दौर रहा जब लोग पंडित कमलापति त्रिपाठी को जानने लगे थे. कांग्रेस पार्टी के भीतर को सबसे चर्चित चेहरों में पहला नाम कमलापति त्रिपाठी का ही आने लगा था.  

4 अप्रैल 1971 को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कमान पंडित कमलापति त्रिपाठी को दी गई यानी उन्हें सूबे का मुख्यमंत्री बनाया गया. उनका ये कार्यकाल लगभग दो साल 69 दिन का रहा. आगे चलकर 12 जून 1973 को उन्होंने सीएम पद को त्याग दिया लेकिन अपने राजनैतिक करियर को उन्होंने रुकने नहीं दिया. साल 1975 से 1977 तक और इसके आगे के समय में यानी साल 1980 में केंद्र में मंत्री पद पर बैठे, रेलमंत्री बनकर रेलवे को इन्होंने अपनी सेवाएं दीं. 

पंडित जी अपने फैसले पर टिके रहे
कमलापति कोई साधारण नेता नहीं रह गए थे बल्कि अपने उसूलों पर चलने वाले और कभी साथी का साथ न छोड़ने वाले नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे. एक ऐसे हिम्मती नेता जो 80 के दशक में भी इंदिरा गांधी से वैचारिक मतभेद में दो-दो हाथ कर सकते थे. 24 अक्टूबर 1980 की घटना है जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस में रेलवे विभाग पर टिप्पणी की गई थी. 

दरअसल, अपनी सरकार के अलग-अलग विभागों के काम को लेकर तारीफ करने के दौरान इंदिरा ने कहा कि जनता पार्टी की सरकार में जो बिगड़ी व्यवस्था थी अब एक-एक कर यह पटरी पर आने लगी है पर रेल विभाग का काम आशा के अनुरूप अभी नहीं हो पा रहा है. पूर्व पीएम का इतना कहना था कि सरकार में दूसरी बार रेल मंत्री बने पंडित कमलापति ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इंदिरा ने 23 नवंबर, 1980 को एक पत्र में लिखा कि- त्रिपाठी जी ने इस्तीफा दे दिया, इसका मुझे दुख है. मैं चाहती हूं कि कैबिनेट में वह रहें. उस दौरा 17 दिन तक पंडित जी से बात करने व उनके द्वारा इस्तीफा वापस लेने को लेकर इंदिरा ने इंतजार भी किया पर पंडित जी अपने फैसले पर टिके रहे. 

पंडित कमलापति के काम पर ध्यान दें:
रेल मंत्री रहते हुए पंडित कमलापति त्रिपाठी ने बड़े कामों को अंजाम दिया. जमीन कई कई नई ट्रेनों को उतारा. 
नई ट्रेन Sabarmati Express चलाई गई.
नई ट्रेन Ganga Kaveri Express चलाई गई.
नई ट्रेन Neelambari Express चलाई गई.
नई ट्रेन Varanasi Express (Delhi-Lucknow Exp. extended) चलाई गई.
नई ट्रेन Tamil Nadu Express चलाई गई.
नई ट्रेन Kashi Vishwanath Express चलाई गई.

मार्च 1987 की बात है जब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह व पीएम  राजीव गांधी के बीच का मतभेद गहराता जा रहा था. उस वक्त की कमलापति त्रिपाठी की चिट्ठियां काफी कुछ बताती हैं. राष्ट्रपति और पीएम के बीच यह मतभेद डाक विधेयक को लेकर था जो इतना गहरा हो गया था कि जैल सिंह राजीव सरकार को बर्खास्त कर देना चाहते थे और एक वैकल्पिक सरकार को गठिक करना चाहते थे. इस दौरान ज्ञानी जैल सिंह ने एक रात्रि अपने करीबी पत्रकार को पंडित जी के पास अपने दूत के तौर पर भेजा और वैकल्पिक सरकार में पीएम बनने का प्रस्ताव उनके सामने प्रस्तुत किया गया लेकिन पंडित जी ने तब साफ शब्दों में कहा कि ऐसा करना मेरी प्रवृत्ति और संस्कार दोनों में नहीं है. इस तरह एक क्षण में पंडित जी ने पीएम बनने का प्रस्ताव झटक दिया. 

यूपी के पूर्व सीएम के बारे में 
यूपी के पूर्व मुख्‍यमंत्री रहे पंडित जी ने देश के प्रधानमंत्री बनने के प्रस्‍ताव को क्षणभर में ठुकरा दिया था. पंडित कमलापति त्रिपाठी 3 सितंबर 1905 को वाराणसी में जन्में थे. काशी विद्यापीठ से उन्होंने शास्त्री और डी.लिट की उपाधि हासिल की. कमलापति की पत्नी का नाम चंद्रा त्रिपाठी था और दोनों के तीन बेटे और दो बेटी हैं. जीवनभर कांग्रेसी रहे पंडित जी की चार पीढ़ी कांग्रेस से ही जुड़ी है. बेटे लोकपति त्रिपाठी भी मंत्री पद पर बैठ चुके हैं. लोकपति त्रिपाठी के बेटे राजेशपति त्रिपाठी भी चुनाव लड़ चुके हैं. राजेशपति त्रिपाठी के बेटे ललितेशपति त्रिपाठी है और फिलहाल, मड़ियान से विधायक हैं.  पंडित कमलापति त्रिपाठी ने 8 अक्टूबर 1990 को दुनिया से विदा लिया.

और पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: देश में चुने जाते हैं 543 सांसद लेकिन लोकसभा में क्यों नहीं होती 420 नंबर की सीट? रोचक है कारण 

Trending news