DNA: महाकाल में दर्शन कीजिये, मौज नहीं; रील्स बनाने का शौक बना न दे मानसिक रोगी!
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DNA: महाकाल में दर्शन कीजिये, मौज नहीं; रील्स बनाने का शौक बना न दे मानसिक रोगी!

Zee News DNA: रील्स बनाने का नशा आजकल कई लोगों पर इस हद तक चढ़ रहा है कि वे महाकाल में भी अपनी हरकतें करने से बाज नहीं आ रहे. ऐसा शौक उन्हें मानसिक रोगी भी बना सकता है. 

 

DNA: महाकाल में दर्शन कीजिये, मौज नहीं; रील्स बनाने का शौक बना न दे मानसिक रोगी!

DNA on Making Reels: एक NGO और IIM अहमदाबाद की एक रिसर्च बताती है कि भारत में औसतन हर व्यक्ति 3 घंटे 14 मिनट, सोशल मीडिया पर बिताता है. सोशल मीडिया पर लोग, या तो अपनी तस्वीरें,वीडियो पोस्ट कर रहे हैं, या फिर दूसरे की फोटोज़ या वीडियोज़ देख रहे हैं. Reels ने तो सोशल मीडिया कंपनियों के वारे न्यारे कर दिए हैं. अब तो ये स्थिति है के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक Social Media Reels बनाते या देखते नजर आ रहे हैं. 

एक बार आप Reels देखनी शुरू करते हैं, तो Social Media कंपनियों का Algorithm आपको बांधे रखने के लिए आपकी पसंद की Reels एक के बाद एक दिखाता रहता है. समय कब बीतता है पता ही नहीं चलता. Millenials हों या फिर Gen Z, Reels बनाना और दुनिया को दिखाना, एक मानसिक बीमारी बनता जा रहा है.

क्या सोशल मीडिया पर टैलंट दिखता है?

Facebook हो, Instagram हो, snapchat हो या फिर youtube shorts, आपको इसमें वीडियो Reels का कभी ना खत्म होने वाला भंडार मिलेगा. Reels बनाने वाले ज्यादातर लोग खुद को सोशल media influencer कहते हैं. इनका मानना है कि ये जो रील्स बनाते हैं, उसमें या तो टैलेंट दिखता है, या फिर ज्ञान की बातें बताई जाती हैं. लेकिन सच्चाई इससे अलग है.

social media पर दिखने वाली Reels में अश्लीलता परोसी जाने लगी है. ज्यादा से ज्यादा व्यूज़ हासिल करने के लिए लोग अभद्र हरकतें कर रहे हैं. Reels में viewership और followers बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर युवतियां, कम कपड़े पहनकर अश्लील डांस करती हुई भी दिखाई दे रही हैं. Reels के नाम पर लोगों को क्या क्या परोसा जा रहा है, उसके बारे में भी बताना जरूरी है.

रील्स के नाम पर बनाए जा रहे अश्लील वीडियोज

Reels में सबसे ज्यादा Dance वीडियोज़ बनाए जा रहे हैं. अब चाहे किसी युवक या युवती को डांस आता हो या ना आता हो, वो टैलेंट के नाम पर Dance वाले वीडियो बना रहे हैं. इसी की आड़ में कुछ युवतियां, दर्शक और followers बढ़ाने के लिए, कम कपड़ों में अश्लील गानों पर अभद्र Dance भी करते नजर आते हैं.

Reels के नाम पर दूसरी चीज़ जो परोसी जा रही है, वो है एक्टिंग. किसी फिल्म के डायलॉग की नकल करते हुए, लोग अपनी acting skills दिखा रहे हैं. इसके अलावा Cooking, Singing जैसा टैलेंट भी लोग Reels में दिखाते हैं.

लेकिन Reels की दुनिया में एक श्रेणी 'ऊल जुलूल' वीडियो वाली भी है. इसमें युवक युवतियां, हर वो हरकतें कर रहे हैं, जिससे लोग उन्हें देखें. फिर चाहे वो झगड़ा हो, मारपीट हो, गाली गलौच हो, अश्लीलता हों या फिर खराब acting हो. ये वो श्रेणी है जिसमें वो सब कुछ किया जा रहा है जो आप सोच भी नहीं पाते हैं. 

महाकाल में दर्शन के लिए आइए, मौज के लिए नहीं

सोशल मीडिया की दुनिया में इस श्रेणी में वीडियो बनाने वालों को 'छपरी' का टैग दिया जाता है. अब इस शब्द का अर्थ वो लोग बेहतर जानते होंगे, जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. DNA में हम इस मुद्दे को इसलिए उठा रहे हैं, क्योंकि आजकल युवक युवतियां, ऐसी जगहों पर भी रील्स बना रहे हैं, जहां रील्स बनाना प्रतिबंधित है. यही नहीं रील्स बनाने से रोकने पर ये लोग, सुरक्षाकर्मियों से मारपीट तक कर रहे हैं. हाल फिलहाल में इसके कुछ उदाहरण बताते हैं.

बीते शनिवार को उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर परिसर में कुछ युवतियों को जब रील्स बनाने से रोका गया, तो उन्होंने वहां मौजूद महिला सुरक्षाकर्मियों से मारपीट शुरू कर दी. आपको बता दें कि महाकालेश्वर मंदिर परिसर में फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है. मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को वहां पर बार-बार इस प्रतिबंध के बारे में बताया जाता है. बावजूद इसके इन लड़कियों ने मंदिर परिसर में ही एक अश्लील गाने पर Reels बनाना शुरू कर दिया था.

ताज महल में भी रील्स के नाम पर दबंगई

जब महिला सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें ऐसा करने से रोका, तो इन लड़कियों ने उनपर धौंस दिखाई. जब सुरक्षाकर्मियों ने सख्ती दिखानी शुरू की, तो Reels बनाने वाली लड़कियो ने मारपीट की. हालांकि पुरुष सुरक्षाकर्मियों के हस्तक्षेप के बाद, मामला शांत हुआ.

इस वीडियो में भी ये दिखाई दे रहा है कि Reels बनाने वाली लड़कियों ने महिला सुरक्षाकर्मियों से धक्का-मुक्की की, जिसके बाद मारपीट शुरू हो गई. महाकाल थाने में मामला दर्ज किया गया, जिसमें Reels बनाने वाली लड़कियों पर मारपीट, सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकतें करना और आपराधिक धमकी देने जैसी धाराओं में केस दर्ज किया गया है.

मंदिर के प्रतिबंधित क्षेत्र में अश्लील गानों पर Reels बनाना, कहां तक जायज़ है? क्या इतनी समझ इन लड़कियों में नहीं होगी कि मंदिर के अंदर लोग श्रद्धा भाव से ईश्वर में मन लगाने आते हैं? क्या Reels बनानी इतनी जरूरी है कि अगर नहीं बनाने दिया जाएगा, तो लड़कियां या लड़के, मारपीट पर उतारू हो जाएंगे. ये चिंताजनक है कि इन लड़कियों को Reels ना बनाने के लिए कहा गया, तो इन लोगों ने मारपीट शुरू कर दी. क्या Reels जीवन का इतना जरूरी हिस्सा बन गया है?

ताजमहल में भी सुरक्षाकर्मियों के साथ बेहूदगी

ये पहली घटना नहीं है, उत्तर प्रदेश के आगरा में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. 6 अप्रैल को ही ताजमहल परिसर में कुछ लड़कियां Reels बना रही थीं. ताजमहल परिसर में भी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है. बावजूद इसके लड़कियां वीडियो बना रही थीं. इस बीच एक CISF जवान ने इन लड़कियों को Reels बनाने से रोका. उसने वीडियोग्राफी प्रतिबंधित होने की बात कही थी. लेकिन लड़कियों ने Reels बनाना नहीं रोका, इसके बाद उन्होंने CISF जवान के साथ ही बदसलूकी शुरू कर दी.

CISF जवान ने जब उनके पास जाकर उन्हें प्रतिबंध के बारे में बताया, तो एक लड़की ने उनको अनाप शनाप कहा, फिर धक्का दे दिया. इस हरकत से गुस्साए जवान ने भी उस लड़की को धक्का दे दिया. इसके बाद फिर से उस लड़की ने CISF जवान को दोबारा धक्का दिया. जबकि उसके साथियों ने उसे ऐसा करने से मना भी किया. बावजूद इसके उस लड़की ने सुरक्षाकर्मी से मारपीट जारी रखी.

वीडियो बनाना शौक है या बीमारी

सुरक्षाकर्मी और उस लड़की के बीच मारपीट और धक्का मुक्की ऐसे ही कुछ देर चलती रही. ताजमहल घूमने आई इन लड़कियों ने शिकायत दर्ज करवाई है, जिसमें उन्होंने cisf जवान पर अभद्रता का आरोप लगाया है. CISF इस मामले में अपने स्तर पर जांच करवा रहा है.

ये वीडियो देखने के बाद भी सवाल वही है कि जब किसी क्षेत्र में वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी प्रतिबंधित है. तो इस नियम का पालन करने में परेशानी क्या है. आखिर नियमों के पालन की याद दिलवाने वाले सुरक्षकर्मियों से मारपीट या धक्कामुक्की क्यों की गई. क्या वीडियो Reels बनाना, नियमों से परे हो चुका है. या फिर ये एक तरह की मानसिक बीमारी बन गया है. जिसमें रोके जाने पर इतना गुस्सा आता है कि विवेक खत्म हो जाता है. हमने इस मामले में एक्सपर्ट्स से बात की.

रिसर्च में हुआ ये दिलचस्प खुलासा

Reels एक बुरी लत की तरह युवाओं पर भारी पड़ रही है. Reels ना बनाने वाले को आजकल पुराने ज़माने की सोच वाला माना जा रहा है. भले ही Reels में अजीबोगरीब हरकतें की जा रही हों, लेकिन Reels देखने वालों के लिए ये एक Content की तरह है. Reels से जुड़ी कुछ खासा जानकारी भी हम आज आपको देना चाहते हैं जैसे

- Instagram की एक Internal रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया के Instagram Users ने प्रतिदिन 1 करोड़ छिहत्तर लाख घंटे केवल Reels देखने में बिताए हैं.

- Tiktok पर Reels देखे जाने का ये आंकड़ा 10 गुना ज्यादा है. Tiktok Users प्रतिदिन 19 करोड़ 78 लाख घंटे, Reels देखने में बिताते हैं.

- META के मुताबिक Facebook और Instagram पर प्रतिदिन 20 हजार करोड़ Reels देखी जाती है.

- दुनियाभर में Instagram के लगभग 240 करोड़ Users है. जिसमें से 50 करोड़ यूजर्स भारत में है.

- दुनियाभर के इंस्टाग्राम यूजर्स दिनभर में 350 करोड़ Reels को दूसरों से शेयर करते हैं.

मेट्रो के यात्रियों को कर रहे परेशान

Reels बनाने को लेकर युवा, हर तरह का खतरा उठाने के लिए तैयार नजर आते हैं. बाइक पर स्टंट करना हो, प्रतिबंधित क्षेत्र की वीडियो बनाना हो या फिर अश्लील वीडियो बनाना हो, वो सब कुछ करने के लिए तैयार है. Reels बनाए जाने से सबसे ज्यादा परेशान तो दिल्ली मेट्रो है.

दिल्ली मेट्रो कई बार मेट्रो के अंदर Reels बनाए जाने को लेकर इस तरह के ट्वीट करती रही है. मेट्रो अनाउंसमेंट में भी लोगों को वीडियो ना बनाने की अपील की जाती है. बावजूद इसके लोग मानते नहीं है. पिछले महीने होली के दौरान भी ऐसे कई वीडियो वायरल हुए थे. जिन्हें अश्लीलता की श्रेणी में समझा गया. 

इस वीडियो में दो लड़कियां मेट्रो के अंदर होली खेलते हुए नजर आई. उनकी हरकतों ने भी वहां मेट्रो में मौजूद लोगों को शर्मिंदा कर दिया था. इसी तरह से दो लड़कियों ने एक स्कूटी पर भी इसी तरह की हरकत की थी, जिसका काफी विरोध हुआ था. रील्स देखने में ज्यादा समय बिताना एक मानसिक रोग की तरह है.

-हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया पर रील्स देखने या बनाने की लत को वैज्ञानिक, Mass Psychogenic illness कह रहे हैं. इसे MPI भी कहा जाता है.

- हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की इस रिसर्च में बताया गया है कि जरूरत से ज्यादा Video Streming प्लैटफॉर्म पर रहने वाले लोगों में भी Mass Psychogenic illness के लक्षण नजर आते हैं.

- वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बीमारी से पीड़ित लोगों के अंदर कुछ खास आदतें होती हैं, जैसे दूसरे लोगों के सामने बातचीत करते वक्त पैर हिलाते रहना. वैज्ञानिक इसको Hyper Active Response कह रहे हैं.

- इसके अलावा दूसरा लक्षण है ADHD यानी Attention Deficit Hyperactivity Disorder. इसका मतलब ये होता है कि जो लोग लंबे समय तक रील्स देखते या बनाते हैं, वो लंबे समय तक एक वीडियो पर नहीं टिकते, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनमें एकाग्रता की कमी हो जाती है. ऐसा व्यक्ति वीडियो ही नहीं, बल्कि किसी भी काम में एकाग्र नहीं हो पाता, वो हमेशा बेचैन रहता है.

रील्स वायरल न हो तो जाते हैं परेशान

सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर चाहे आप फोटो डाल रहे हों, या फिर कोई रील...उसपर अगर लाइक्स ना आएं, कमेंट्स ना आएं, तो बुरा लगता है. दरअसल सोशल मीडिया में रील्स बनाने वालों को खुद के वीडियो से बहुत ज्यादा उम्मीदें रहती हैं. लेकिन रील्स वायरल ना होने पर कुछ समय बाद यही लोग Depression का शिकार हो जाते हैं. उनमें नींद की कमी, सिरदर्द, माइग्रेन जैसे लक्षण भी नजर आने लगते हैं.

Reels देखने और बनाने की आदत पर गुजरात के अहमदाबाद की इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनविर्सिटी ने एक रिसर्च की थी. इस रिसर्च का मकसद ये जानना था कि लोग Reels बनाने या देखने में इतना समय क्यों लगाते है. इस रिसर्च में 18 से 36 वर्ष तक के लोगों को शामिल किया गया था.

आखिर क्यों रील्स बनाते हैं लोग?

रिसर्च के मुताबिक 85 प्रतिशत लोगों का कहना था कि रील्स बनाने या देखने से लोगों को मनोरंजन मिलता है. 92 प्रतिशत लोगों का कहना था कि Reels बनाने से उनमें Self Rewarding, Self Promotion की भावना आती है, उन्हें उपलब्धि का अहसास होता है. ये अहसास Likes, Comments और वीडियो शेयर के तौर पर होता है.

- 88 प्रतिशत लोगों का कहना था कि Reels वगैरह बनाने से वो Trendy महसूस करते हैं. यानी आज के जमाने के साथ चलने वाला महसूस करते हैं. वो मानते हैं कि आजकल यही चल रहा है तो ये करना ही होगा. 87 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वो अपने वीडियोज़, तस्वीरें या रील्स डालकर, उन्हें इस तरह Save कर लेते हैं.

 87 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जिनका मानना था कि Reels बनाने या देखने से वो कुछ पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों और परेशानियों से दूर हो जाते हैं. ऐसे लोग इसे Escape plan की तरह देखते हैं. इस श्रेणी में महिलाओँ की संख्या, पुरुषों से ज्यादा थी. 83 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जो कुछ नया करने या नया देखने की इच्छा लेकर Reels देखने या बनाने में समय बिताते हैं.

- उन्यासी प्रतिशत लोग ऐसे थे जो कोई रील तो नहीं बनाते हैं, लेकिन वो दूसरों की पोस्ट इसलिए देखते हैं कि उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है.

कहीं बन न जाएं मानसिक रोगी?

आजकल लोग एक दिन में कई-कई रील्स बनाते हैं. इनमें सेलिब्रिटी भी हैं और आम इंसान भी. कुछ की रील्स हिट हो जाती हैं तो कुछ को लोग बिल्कुल पसंद नहीं करते. देश में Reels बनाने वाले युवाओं में एक खास तरह की मानसिकता बन रही है. जो रील्स में एक्टिंग करके, खुद को सेलिब्रिटी मान लेते हैं. ऐसे लोगों को मेडिकल भाषा में Narcissist की श्रेणी में डाला जा रहा है..

ये ऐसे लोग होते हैं जो Self Obsessed या खुद पर ही मोहित रहने वाले लोग हैं. तो अगर आप भी Reels बनाने या देखने के शौकीन है तो सावधान हो जाइए, क्योंकि ये धीरे धीरे आपको मानसिक रोगी बना रहे हैं.

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