भारतीयों में बढ़ रहा है इन बीमारियों का खतरा, डॉक्टर से जानिए कैसे बच सकते हैं आप
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भारतीयों में बढ़ रहा है इन बीमारियों का खतरा, डॉक्टर से जानिए कैसे बच सकते हैं आप

भारतीय लोगों के खान पान से लेकर सेनिटेशन में इतनी समस्याएं हैं कि ये धीरे-धीरे हमें बीमार कर रही हैं, आइए जानते हैं कि वो कौन-कौन से हेल्थ प्रॉबल्मस हैं जिनसे सतर्क रहने की जरूरत है. 

भारतीयों में बढ़ रहा है इन बीमारियों का खतरा, डॉक्टर से जानिए कैसे बच सकते हैं आप

Key health issues faced by Indians: भारत में कई ऐसी बीमारीयां है जो इस देश के नागरिकों की सेहत बिगाड़ रही है, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग दिल्ली में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. पवन कुमार गोयल (Dr. Pawan Kumar Goyal) ने कहा, "भारत में हेल्थ लैंडस्केप को करीब से देखने पर ये साफ हो जाता है कि भारतीयों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं सामाजिक-आर्थिक, एनवायर्नमेंटल और कल्चरल फैक्टर के कॉम्पलेक्स इंटरप्ले से पैदा होती हैं. सबसे ज्यादा प्रेशर वाली चिंताओं में नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज, कम्यूनिकेबल डिजीज, कुपोषण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के मुद्दे और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं शामिल हैं."

इन बीमारियों में इजाफा

डॉ. गोयल ने आगे कहा, "पूरे देश में नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज में गजब का इजाफा देखा गया है, जिसमें दिल की बीमारी, डायबिटीज, सांस से जुड़ी बीमारियां और कैंसर जैसी स्थितियां तेजी से बढ़ रही हैं. ये देखना चिंताजनक है कि कैसे इनएक्टिव लाइफस्टाइल, अनहेल्दी डाइट, आधुनिकीकरण, तंबाकू का सेवन और बढ़ता मेंटल प्रेशर हमारे समुदायों के स्वास्थ्य, खास तौर से शहरी क्षेत्रों में कैसे प्रभाव डाल रहा है."

समाज पर पड़ रहा है असर

इंफेक्शियस डिजीज हमारे समाज के कई वर्गों को लगातार प्रभावित करते हैं, जिसमें दस्त, टाइफाइड, टीबी, मलेरिया, डेंगू और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां फैल रही हैं. ये देखना बेहद चिंताजनक है कि कम सेनिटेशन, साफ पानी तक पहुंच की कमी, भीड़-भाड़ और लिमिटेड हेल्थकेयर स्ट्रक्चर जैसे फैक्टर्स का असर, खासकर ग्रामीण और शहरी झुग्गी बस्तियों में पड़ रहा है.

कुपोषण की समस्या

कुपोषण एक दयनीय समस्या है जो अनगिनत लोगों को प्रभावित करती है, जिसमें अंडरन्यूट्रीशन और ओवरन्यूट्रीशन दोनों ही गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं. ये देखकर दुख होता है कि हम में से कितने लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं, खासकर कमजोर आबादी के बीच, जबकि कई लोग अनहेल्दी फूड आइटम्स के इनटेक के कारण मोटापे और डाइट रिलेटेड डिजीज का सामना करते हैं. पौष्टिक भोजन तक सीमित पहुंच, गरीबी और इनएडेक्वेट हेल्थकेयर इस समस्या को और बढ़ा देती है.

मां और बच्चे की सेहत

स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति के बावजूद, मैटरनल और चाइल्ड हेल्थ से जुड़ी चिंताएं बनी हुई हैं, खासकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में. मैटरनल मॉरेटेलिटी रेट, शिशु मृत्यु दर और बच्चों में कुपोषण की अप्रत्याशित रूप से अभी भी अधिक दरें हमारे समाज में मौजूद असमानताओं का एक सख्त संकेत हैं. अपर्याप्त प्रसवपूर्व देखभाल, स्किल बर्थ एटेंडेंट की कमी, खराब स्वच्छता और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएं इन असमानताओं में योगदान देती रहती हैं

मेंटल हेल्थ पर असर

हमारे समुदायों में मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर का बढ़ता बोझ उतना ही परेशान करने वाला है. सामाजिक कलंक, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं कई लोगों को अपने संघर्षों के लिए मदद लेने से रोकती हैं. ये देखना पीड़ादायक है कि किस तरह तेजी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, शहरीकरण, काम से जुड़ा तनाव और सामाजिक अपेक्षाएं और अलगाव हमारे यंग और ब्राइट साइंटिफिक माइंड के मेंटल हेल्थ पर बुरा असर डाल रहे हैं.

कैसे आएगा बदलाव?

इन प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान सिर्फ नीतिगत बदलावों से ही नहीं, बल्कि हम सभी के जेनुइन ह्यूमैनिटेरियन एफर्ट से भी करने की जरूत है. स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने, हेल्थ केयर इंफ्रस्ट्रक्चर को मजबूत करने, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करने और मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता और सपोर्ट को तरजीह देने के कोशिश न सिर्फ जरूरी हैं, बल्कि हमारे देश की भलाई के लिए भी नैतिक रूप से आवश्यक है.

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