इश्क़

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के .

मोहब्बत

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.

सादगी

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.

ख़्वाहिशें

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

रौनक़

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.

आतिश

इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब', कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.

लहू

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.

घर

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं.

ख़ुदा

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.

जन्नत

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है.