क्या यह इस्लाम का झंडा उठाने वाले एर्दोगन की हार है? लोकल चुनाव नतीजों ने चौंकाया
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क्या यह इस्लाम का झंडा उठाने वाले एर्दोगन की हार है? लोकल चुनाव नतीजों ने चौंकाया

Turkey News: तुर्की के बॉडी इलेक्शन में राष्ट्रपति रिसेप तैयब एर्दोगन की पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. यह मु्स्लिमों का मु्द्दा उठाने वाले राष्ट्रपति की बड़ी हार मानी जा रही है.

क्या यह इस्लाम का झंडा उठाने वाले एर्दोगन की हार है? लोकल चुनाव नतीजों ने चौंकाया

Turkey News: दुनियाभर में इस्लाम के मामलों में तुर्की अपनी राय रखता है. वह दुनिया भर में कई मुस्लिम मुद्दों में बोल चुका है. यहां तक कि तुर्की कश्मीर मुद्दे पर भी अपनी राय रख चुका है. तुर्की को सबसे ज्यादा मार्डन इस्लामिक कंट्री के रूप में भी जाना जाता है. इसकी बड़ी वजह है कि तुर्की में रिसेप तैयब एर्दोगन की सरकार है. वह तुर्की में मुस्लिम की राजनीति करते हैं. रिसेप तैयब एर्दोगन यहां पिछले 21 सोलों से सत्ता पर काबिज हैं. लेकिन हाल ही में यहां रिसेप तैयब एर्दोगन की पार्टी को लोकल बॉडी इलेक्शन यानी श्थानीय निकाय चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. रिसेप तैयब एर्दोगन के लिए यह बड़ी हार है.

एर्दोगन की हार
बीबीसी ने लिखा है कि लोकल चुनावों में एर्दोगन की हार के बड़े मायने हैं. एर्दोगन की पार्टी की हार ऐसे वक्त हुई है जब उन्होंने पिछले साल ही तीसरा टर्म शुरू किया है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि विपक्ष ने एर्दोगन को कमजोर कर दिया है. खबरों के मुताबिक 81 लोकल बॉडीज में से 36 पर विपक्ष ने जीत हासिल की है. कुछ खबरों में ये संख्या 49 बताई जाती है. 

एर्दोगन क्या बोले?
इस्तांबुल और अंकारा के अलावा कई शहरों में एर्दोगन खुद चुनाव प्रचार के लिए गए. इस्तांबुल में वह पैदा हुए और यहां के मेयर भी रहे. लेकिन विपक्ष के नेता एकरेम इमामोग्लू ने यहां जीत दर्ज की है. यह राष्ट्रपति रिसेप तैयब अर्दोगन का तीसरा टर्म है. कई जानकार मानते हैं कि अगर फिर राष्ट्रपति बनते तो वह संविधान में संशोधन कर राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल होते जो अब मुम्किन नहीं है. एर्दोगन ने कहा कि "यह नतीजे निर्णायक मोड़ नहीं है बल्कि एक मोड़ है."

विपक्ष का बयान
तुर्की बॉडी इलेक्शन में जीत के बाद एकरेम इमामोग्लू साल 2028 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में अहम विपक्षी उम्मीदवार बन गए हैं. उन्होंने कहा कि बदकिस्मती से दुनिया में लोकतंत्र कमजोर पड़ रहा है, इससे तानाशाही सरकारें सत्ता में आ रही हैं. कई लोगों ने अंदाजा लगाया कि क्या हमारे यहां भी लोकतंत्र खतरे में है, लेकिन 31 दिसंबर वह तारीख है जब लोकतंत्र का पतन रुक गया है. फिर से इसका उदय हो रहा है.

जनता को रास नहीं आ रहे एर्दोगन
ख्याल रहे कि एर्दोगन तुर्की की सत्ता पर 21 सालों से काबिज हैं. उन्हें यहां सबसे ज्यादा तकतवर नेता माना जाता है. उन्होंने यहां प्रधानमंत्री के कुछ अधिकार भी खत्म कर दिए हैं. लेकिन अब बॉडी इलेक्शन बता रहे हैं कि जनता उन्हें और बर्दाश्त नहीं करना चाहती है. यहां बढ़ती महंगाई और कट्टरपंथ फैसले लोगों को रास नहीं आ रहे हैं.

अब क्या होगा?
बीबीसी ने लिखा है कि अब ज्यादातर शहरों में विपक्षी पार्टी के मेयर होंगे. जहां एर्दोगन अपने फैसले लागू करना चाहते हैं, वहीं विपक्ष सेक्युलर सोच लागू करेगा. तुर्की के मेयर नेशनल पॉलिटिक्स में असर रखते हैं. बॉडी इलेक्शन से पहले एर्दोगन ने प्रचार के दौरान कहा था कि बतौर राष्ट्रपति 2028 में मेरा आखिरी टर्म होगा. उन्होंने कहा था कि वह देश में बहुत सुधार करना चाहते हैं. 

भारत पर तुर्की का बयान
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोगन ने फरवरी 2020 में पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया था. उन्होंने कहा था कि "हमारे कश्मीरी भाई और बहन दशकों से पीड़ित हैं. हम एक बार फिर से कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ हैं. हमने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में उठाया था. कश्मीर का मुद्दा जंग से नहीं सुलझाया जा सकता. इसे इंसाफ़ और निष्पक्षता से सुलझाया जा सकता है. इस तरह का समाधान ही सबके हक़ में है. तुर्की इंसाफ़, शांति और संवाद का समर्थन करता रहेगा." 

भारत का जवाब
इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, "हम चाहते हैं कि तुर्की का नेतृत्व सभी तथ्यों की सही समझ बना पाए जिसमें पाकिस्तान से भारत में होने वाला आंतकवाद भी शामिल है."

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