आखिर ऐसा क्यों बोले CJI- "जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, सुप्रीम कोर्ट न आएं"
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आखिर ऐसा क्यों बोले CJI- "जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, सुप्रीम कोर्ट न आएं"

CJI: चीफ जस्टिस ऑफ डी वाई चंद्रचूड़ ने एक वकील को बड़ी कह दी है. दरअसल वकील साहब का कहना था कि गर्मियों की छुट्टियों से पहले उनके मामले की तारीख दे दी जाए. जिसके बाद डी वाई चंद्रचड़ ने बड़ी कह दी और गुजारिश की कि हमारे हालात को समझिए.

आखिर ऐसा क्यों बोले CJI- "जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, सुप्रीम कोर्ट न आएं"

Chief Justice of India: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ अपने फैसलों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. अदालत के अलावा भी वो प्रोग्राम्स में अपने बेबाक बयानों के लिए पहचाने जाते हैं. हाल ही में अदालत में एक ऐसी घटना पेश आई कि CJI चंद्रचूड़ ने एक वकील को बड़ी बात कह दी. उन्होंने कहा,"जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, सुप्रीम कोर्ट न आएं."

दरअसल सुनवाई के दौरान एक वकील ने चीफ जस्टिस से गर्मियों की छुट्टी से पहले तारीख देने की मांग की थी. जिस पर चीफ जस्टिस मेहरबानी करके हमारे हालात को समझिए. यह आखिरी सप्ताह है और दो जज रिटायर भी हो रहे हैं. ऐसे में जब तक किसी की मौत की साज़ा पर अमल ना हो रहा हो हम सुनवाई नहीं कर सकते. इस दौरान CJI ने बार से भी गुजारिश करते हुए कहा कि आप तभी किसी मामले को जिक्र करें जब कोई बड़ी इमरजेंसी हो. आज हमारे पास 237 केस लिस्टेड हैं. 

"200 दिन काम करता है भारतीय सुप्रीम कोर्ट"

बता दें कि हाल ही में चीफ जस्टिस ने एक न्यूज चैनल के प्रोग्राम में बताया था कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट एक साल में 200 दिन काम करता है. साथ ही उन्होंने बताया कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट 80 दिन काम करता है. ऑस्ट्रेलियाई सुप्रीम कोर्ट 100 दिन और ब्रिटेन व सिंगापुर के सुप्रीम कोर्ट 145 दिन काम करते हैं. यहां चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट की लंबी शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के बचाव में यह बातें कर रहे थे. 

चीफ जस्टिस ने हाल ही में जजों को सावधानी बरतने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि अदालत की लाइव स्ट्रीमिंग कार्यवाही की वजह से हर चीज सार्वजनिक है. ऐसे में जजों को एक शब्द-शब्द सावधानी से बोलना चाहिए. चीफ जस्टिस यह बात इसलिए कही क्योंकि सोशल मीडिया पर अदालती कार्यवाही के कई वीडियो वायरल होते रहते हैं जिसमें कुछ मजाकिया चीजें भी होती हैं. ऐसे में जजों को अलर्ट रहना चाहिए और इसके लिए ट्रेनिंग की भी जरूरत है. 

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