इस्लाम में सब्र करना है बेहतरीन अमल, लेकिन इन बातों से कभी न करें समझौता
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इस्लाम में सब्र करना है बेहतरीन अमल, लेकिन इन बातों से कभी न करें समझौता

Islamic Knowledge: इस्लाम में सब्र करने के बारे में बताया गया है कि लेकिन किसी गलत बात पर सब्र करना हराम है. कुरान और हदीस की रोशनी में समझें सब्र के माने.

इस्लाम में सब्र करना है बेहतरीन अमल, लेकिन इन बातों से कभी न करें समझौता

Islamic Knowledge: आज कल हमारे मुआशरे में लोगों में सब्र की कमी देखी जा रही है. अगर किसी शख्स का कोई काम बिगड़ जाता है, तो वह झुंझला जाता है. अगर किसी शख्स पर कोई बीमारी आ जाती है, तो वह अल्लाह पर दोष मढ़ने लगता है. लेकिन इस्लाम में सब्र करने के बारे में बताया गया है. सब्र करना एक खूबी है. इसका मतलब परेशानी से बचना और मुश्किल वक्त में पुरसुकून रहना है. इस्लाम में कहा गया है कि अल्लाह अपने बंदों को आजमाने के लिए उनको डराएगा, भूख रखेगा, बीमारी देगा, सामान या जान का नुकसान करेगा. ऐसे वक्त में इंसान को डटे रहना है, सब्र करना है और अल्लाह पर यकीन रखना है.

कुरान में सब्र?
इस्लाम में कहा गया है कि अल्लाह ताला किसी भी इंसान पर उसकी बर्दाश्त से ज्यादा बोझ नहीं डालता. इसलिए अल्लाह ने कुरान में कहा है कि "ऐ ईमान वालों! सब्र और नमाज से मदद मांगो, बेशक अल्लाह साबिरों के साथ है." (सूरह: बकर, 153)

इन बातों पर न करें सब्र
इस्लाम में बताया गया है कि इस्लाम में जिन कामों से मना किया गया है, उन से सब्र (रुकना) फर्ज है. तकलीफ देने वाला काम जिसके बारे में मना किया गया है, इस पर सब्र करना मना है. जैसे- अगर किसी शख्स या उसके बेटे का हाथ बिना किसी वजह के काटा जाए तो उस शख्स का खामोश रहना और सब्र करना (खामोश रहना) मना है. इसी तरह से जब कोई शख्स आपके साथ बुरे इरादे से या उस के घर वालों की तरफ बढ़े और उसकी गैरत भड़क उठे, लेकिन गैरत का इज्हार न करे और घर वालों के साथ जो कुछ हो रहा है उस पर सब्र करे और ताकत के बावजूद न रोके तो शरीयत ने इसे हराम करार दिया है. इस तरह के अमल पर खुल कर मुखालफत करें और उसे रोकने के लिए जी जान लगा दें.

बेहतरीन सब्र
एक जगह इरशाद है कि सबसे अच्छा सब्र यह है कि इंसान परेशानी में हो और कोई शख्स उसे पहचान न सके, उस की परेशानी किसी पर जाहिर न हो. इस्लाम में बताया गया है कि लोगों की तरफ से पहुंचने वाली तकलीफ पर सब्र किया जाए. प्रोफेट मोहम्मद स. ने कहा है कि "जो तुम से ताल्लुक तोड़े उससे अच्छे से पेश आओ, जो तुम्हें महरूम करे उसे अता करो और जो तुम पर जुल्म करे उसे माफ कर दो."

सब्र पर हदीस
हजरत अबु हुरैरह रजि. कहते हैं कि, प्रोफेट मोहम्मद स. ने फरमाया है कि अल्लाह ताला फरमाता है कि, जब मैंने किसी मोमिन बंदे की महबूब चीज इस दुनिया से उठा लेता हूं, फिर वह सवाब की नियत से सब्र करे, तो इस का बदला जन्नत ही है. (हदीस: सहीह, बुखारी)

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