Lok Sabha Chunav 2024: पहले फेज की वोटिंग तो खत्म हो चुकी है और अब दूसरे फेज की वोटिंग 26 अप्रैल को होनी है. इससे पहले उन नेताओं की रिपोर्ट सामने आई है, जिनके खिलाफ क्रिमनल केस चल रहे हैं.
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Lok Sabha Chunav 2024: संसद सदस्यों और विधान सभा सदस्यों से संबंधित आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों ने 2023 में 2,000 से अधिक मामलों का फैसला किया है. इस बात की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी गई है. सीनियर अधिवक्ता विजय हंसारिया के जरिए दायर एक हलफनामे में कहा गया है कि लंबित मुकदमों के जल्दी फैसला और सख्त निगरानी के तहत उनकी जांच के लिए अधिक निर्देशों की जरूरत है. क्योंकि पहले दो चरण में चुनाव लड़ रहे 501 उम्मीदवारों के खिलाफ क्रिमनल केस चल रहे हैं.
गैर सरकारी संगठन 'एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स फॉर द लोकसभा चुनाव 2024 फेज- 1 और फेज-2' की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए हंसारिया ने कहा कि 2,810 उम्मीदवारों में से 501 (18 प्रतिशत) उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जिनमें से 327 (12 प्रतिशत) उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं. जिनमें 15 साल से ज्यादा की जेल हो सकती है. बता दें, फेज-1 में 1618 उम्मीदवार और फेज 2 में 1192 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
उन्होंने अलग-अलग हाई कोर्ट से मिली जानकारी के आधार पर एक चार्ट दिया, जिसके तहत 1 जनवरी, 2023 तक सांसदों के खिलाफ 4,697 आपराधिक मामले थे और पिछले साल 2,018 मामलों का फैसला किया गया था. हलफनामे में कहा गया है कि 2023 में सांसदों/विधायकों के खिलाफ 1,746 नए आपराधिक मामले दर्ज किए गए और 1 जनवरी, 2024 तक कुल 4,474 मामले लंबित हैं.
1 जनवरी, 2023 तक 1,300 में से अधिकतम 766 मामलों का फैसला उत्तर प्रदेश की विशेष अदालतों के जरिए किया गया था. दिल्ली, जहां पिछले साल की शुरुआत में 105 मामले थे, वहां की अदालतों ने 31 दिसंबर, 2023 तक 103 मामलों का निपटारा किया है. महाराष्ट्र जैसे कुछ बड़े राज्यों ने 1 जनवरी, 2023 तक सांसदों/विधायकों के खिलाफ 476 मामलों में से 232 मामलों का फैसला किया, पश्चिम बंगाल ने 26 में से 13, गुजरात ने 48 में से 30, कर्नाटक ने 226 में से 150, केरल ने 132 में से 370, और बिहार ने 525 मामलों में से 171 मामलों का फैसला किया.
पिछले साल 9 नवंबर को, सांसदों के खिलाफ 5,000 से अधिक आपराधिक मामलों में तेजी से सुनवाई के मकसद से एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को मामलों के जल्दी निपटारे के लिए निगरानी के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया था.