"जादू है या तिलिस्म तुम्हारी जबान में, तुम झूट कह रहे थे मुझे एतबार था"
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"जादू है या तिलिस्म तुम्हारी जबान में, तुम झूट कह रहे थे मुझे एतबार था"

Bekhud Dahelvi: बेखुद दहेलवी अच्छा खाते और अच्छा पहनते थे. कहा जाता है कि दिल्ली की जबान उनकी शायरी की जान है. पेश हैं बेखुद दहेलवी के शेर. पढ़ें.

"जादू है या तिलिस्म तुम्हारी जबान में, तुम झूट कह रहे थे मुझे एतबार था"

Bekhud Dehlvi: बेखुद देहलवी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनका असली नाम सय्यद वहीदुद्दीन था. वह साल 1863 को भरतपुर में पैदा हुए. वह दिल्ली में पले बढ़े. शायरी उन्हें वरासत में मिली. उनका घराना शायरी से जुड़ा था. उन्होंने ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली से तालीम हासिल की. उन्होंने शायरी का उस्ताद‘दाग़’ देहलवी को बनाया. दाग देहलवी की शायरी का असर बेखुद दहेलवी में नजर आता है. बेखुद की शायरी में दिल्ली की जबान झलकती है. साल 1955 में वह इंतेकाल कर गए.

दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद' 
अब किसी पर फ़िदा नहीं होता  

वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना 
जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या 

न देखना कभी आईना भूल कर देखो 
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा 

हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की 
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की 

झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले 
अल्लाह बिगाड़े न बनी बात किसी की 

दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें 
जो हमारा न हुआ कब वो तुम्हारा होगा 

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अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को 
मालूम हुआ इश्क़ के क़ाबिल तो नहीं हम 

जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं 
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था 

बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद 
जी तो ये चाहता है तिरी मान जाइए 

बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों 
कोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए 

दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा 
तुझ को आता है ख़ुदा याद हमारे होते 

अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी 
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो

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