महिलाएं क्यों नहीं करती हैं पिंडदान, जानें बड़ा कारण

K Raj Mishra
Sep 12, 2023

सनातन धर्म में श्राद्ध का बहुत महत्व है. श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक मनाया जाता है.

पितृपक्ष के 15 दिन तक लोग अपने पितरों का पिंडदान करते हैं. मान्यता है कि इन 15 दिनों तक हमारे पितृ पृथ्वी पर आते हैं.

इस दौरान लोग अपने पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उन्हें समर्पित करते हैं. अपने वंशजों के प्रसन्न होकर पितृ उन्हें आशीर्वाद देते हैं.

श्राद्ध पक्ष में कौओं को बुलाकर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है. पुराणों ने कौए को देवपुत्र माना है.

पिंडदान का पहला अधिकारी पुत्र को माना जाता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, पुत्र ही नरक से मुक्ति दिला सकता है.

एक से ज्यादा बेटे होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध करता है. बेटा नहीं होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में कुल के लोग पिंडदान कर सकते हैं.

महिलाएं पिंड़दान नहीं करती हैं. शास्त्रों के अनुसार, महावारी के दौरान महिलाओं को अशुद्ध माना जाता है.

महिलाओं द्वारा नारियल फोड़ने की भी मनाही है. दरअसल, नारियल को श्रीफल कहा जाता है और इसे एक बीज का फल माना जाता है.

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