समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए इन 14 रत्नों के प्रभावों को जीवन में उतार लिया, तो मानव से देवता बनते नहीं लगेगी देर

Zee Bihar-Jharkhand Web Team
Oct 28, 2023

कालकूट विष रत्न

समुद्र मंथन में सबसे पहले कालकूट विष रत्न निकला. यह मानव जीवन के लिए संकेत है कि सबसे पहले बुरे विचारों का त्याग करना चाहिए.

कामधेनु रत्न

इसका अर्थ यह है कि जब मन से बुरे विचार निकल जाते हैं, तब हमारा मन कामधेनु की तरह पवित्र हो जाता है.

उच्चैश्रवा घोड़ा रत्न

कहा जाता है कि यह घोड़ा मन की गति के समान चलता था, जिसका मतलब है कि जब भी मन भटकता है, बुराइयों से लैस हो जाता है.

ऐरावत हाथी रत्न

यह मानव जीवन के लिए संकेत है कि जब मन बुराइयों से दूर होगा तब ही बुद्धि शुद्ध होगी और उजाले सी चमकेगी.

कौस्तुभ मणि रत्न

इस रत्न का अर्थ है कि जब हमारे मन से बुरे विचार निकल जाते हैं, बुद्धि शुद्ध हो जाती है तब मन में भक्ति का सूत्रपात होता है.

कल्पवृक्ष रत्न

इस वृक्ष को इच्छा पूर्ति करने वाला वृक्ष भी माना जाता है जो संकेत देता है कि भक्ति के समय अथवा मन के मंथन के दौरान अपनी सभी इच्छाओं को दूर रखना चाहिए.

अप्सरा रंभा रत्न

यह मानव जीवन के लिए संकेत है कि भक्ति के दौरान कामवासना से दूर रहना चाहिए और लालच नहीं करना चाहिए.

देवी लक्ष्मी रत्न

इस रत्न को देवता और दानव सभी पाना चाहते थे, लेकिन लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के पास रहना स्वीकार किया. इसका अर्थ यह है कि धन उन लोगों के पास जाता है, जो कर्म करना जानते हैं

वारुणी देवी रत्न

वारुणी का अर्थ मदिरा होता है, जिसे दैत्यों ने ग्रहण किया था. जिसका अर्थ है कि अगर परमात्मा को पाना है तो सबसे पहले नशा छोड़ना होगा.

चंद्रमा रत्न

इस रत्न का अर्थ यह है कि जब मन बुरे विचारों से दूर हो जाएगा, तो वह चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा.

पारिजात वृक्ष रत्न

इस वृक्ष को छूने से थकान मिट जाती थी जो कि मानव जीवन के लिए संकेत है कि जब आप परमात्मा के निकट पहुंच जाते हैं, तो आपके सारे कष्ट अपने आप दूर हो जाते हैं.

पांचजन्य शंख रत्न

शंख को विजय का प्रतीक माना जाता है. जब आप अमृत यानी ईश्वर से एक कदम दूर होते हो, तो आपके मन का खालीपन ईश्वरीय स्वर से भर जाता है.

भगवान धन्वंतरि

यह रत्न मानव जीवन के लिए संकेत है कि जब आपका शरीर निरोगी और मन निर्मल होगा, तभी इसके भीतर आपको परमात्मा की प्राप्ति होगी.

अमृत कलश रत्न

भगवान धन्वंतरि के हाथ में 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश था, जिसका अर्थ है कि बुराइयों को दूर करके जब हम भक्ति में लीन हो जाते हैं, तब भगवान का आशीर्वाद मिलना तय हो जाता है.

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