मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश और विदेशों में बहुत प्रसिद्ध है. यहां की लीची बहुत ही रसीली और मीठी होती है. मुजफ्फरपुर की लीची को इसकी विशेष सुगंध और स्वाद के लिए जीआई टैग मिला है. जीआई टैग उन उत्पादों को मिलता है जो किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में तैयार किए जाते हैं.
डॉ. विकास दास ने कहा कि लीची एक उपोष्ण कटिबंधीय फल है और यह नम उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है. यह आमतौर पर कम ऊंचाई पसंद करता है और 800 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है.
युवा पेड़ों को कई वर्षों तक ठंड और गर्म हवाओं से सुरक्षा की आवश्यकता होती है. पेड़ों के सही फलन के लिए तापमान में कुछ बदलाव की जरूरत होती है. गर्मियों में तापमान 40.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक और सर्दियों में हिमांक से नीचे नहीं जाना चाहिए.
लंबे समय तक बारिश लीची के लिए हानिकारक हो सकती है, खासकर फूल आने के समय यह परागण में बाधा डालती है. लीची की प्रमुख प्रजातियों में शाही लीची चाइना के साथ अनुसंधान केन्द्र की ओर से गंडकी लालिमा, गंडकी संपदा और गंडकी योगिता को किसान की मांग पर उपलब्ध किया जा रहा है. एक एकड़ में लीची के 50 पौधे लगाए जाते हैं.
लीची के पौधे 10x10 मीटर की दूरी पर लगाने चाहिए. लीची के पौध की रोपाई से पहले अप्रैल-मई माह में खेत में गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए. इन गड्ढों को 20-25 किलोग्राम गली सड़ी हुई की खाद के साथ भर दें.
नए पौधों को गर्म और ठंडी हवा से बचाने के लिए लीची के पौधों के आस-पास हवा रोधक पेड़ लगाएं. लीची के पौधों को तेज हवाओं से बचाने के लिए आसपास आम और जामुन जैसे लंबे पेड़ लगाए जा सकते हैं.
लीची के लिए बिहार के साथ देश के 19 राज्य सबसे ज्यादा उपयुक्त हैं. यहां पर किसान व्यावसायिक खेती कर सकते हैं. जिन राज्यों में संभावनाएं हैं. उसमें बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, मिजोरम, गुजरात, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं.
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक और डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च, डॉ एस के सिंह ने कहा है कि अच्छी लीची के लिए अभी एक सप्ताह और इंतजार करना होगा. उन्होंने बताया कि लीची अभी लाल रंग में है, लेकिन केवल इस रंग के आधार पर ही तोड़ना सही नहीं है.