दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है.
इस दिन घर के बाहर गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा की जाती है, लेकिन क्या आपको इसके पीछे की वजह पता है? अगर नहीं तो आइए हम बताते हैं.....
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रज में ब्रजवासी पूजन कार्यक्रम की तैयारियों में जुटे हुए थे.
भगवान श्रीकृष्ण ये सब देखकर व्याकुल हो जाते हैं और अपनी माता यशोदा से पूछते हैं- मैया, ये सब ब्रजवासी आज किसकी पूजा की तैयार में लगे हैं.
तब यशोदा माता ने कृष्ण जी को बताया कि ये सब इंद्र देव की पूजा की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि वो वर्ष करते हैं तभी हमें अन्न और गायों को चारा मिल पाता है.
इस बात पर कृष्ण जी ने कहा कि इंद्रदेव का वर्षा करना कर्तव्य है. उनकी पूजा की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर गायें चरती हैं.
इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे.
श्री कृष्ण की इस बात से इंद्रदेव क्रोधित हो गए और मूसलाधार बारिश करने लगे, जिस वजह से हर तरफ कोहराम मच गया.
तब श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया, जिसके नीचे सभ ब्रजवासियों शरण ली.
इसके बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से माफी मांगी. तब से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा चली आ रही है.