“Beyond Doubt - A Dossier on Gandhi's Assassination” नाम की किताब में बापू पर किए गए पांच जानलेवा हमलों का जिक्र.
25 जून 1934 में पुणे में महात्मा गांधी कार से एक समारोह में जा रहे थे, लेकिन एक जैसी दिखने वाली उनके आगे चल रही कार को बम से उड़ा दिया गया.
जुलाई 1944 में पंचगणी (महाराष्ट्र) में नाथूराम गोडसे को प्रार्थना सभा में गांधीजी की ओर बढ़ते देखा गया लेकिन सतारा के मणिशंकर पुरोहित और भिलारे गुरुजी ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया.
जून 1946 में गांधीजी ट्रेन से पुणे जा रहे थे, लेकिन नेरुल और कर्जत स्टेशन के बीच उनकी ट्रेन को दुर्घटनाग्रस्त करने की कोशिश की गई पर वो बल-बाल बच गए.
सितंबर 1944 में ही हिंदू महासभा गांधी-जिन्ना मुलाकात का विरोध कर रही थी. बम्बई में नाथूराम गोडसे ने गांधीजी को चाकू मारने की कोशिश की, लेकिन आश्रमवासियों ने उसे रोक लिया.
20 जनवरी 1948 को बिरला भवन दिल्ली में मदनलाल पाहवा, नाथूराम गोडसे और उनके साथियों ने पोडियम पर बम फेंककर गांधीजी को मारने की कोशिश की, लेकिन ऐन वक्त पर मदनलाल पकड़ा गया.
पाकिस्तान न जाकर भारत में रहने का फैसला कर चुके मुसलमानों के बचाव के लिए गांधीजी दिल्ली में थे. 30 जनवरी 1948 को छठवीं बार बिरला हाउस में प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने उन्हें तीन गोली मार दीं.
इससे पहले 1917 में चम्पारण (बिहार) में बापू की लोकप्रियता से घबराए अंग्रेज मिल मालिक ने देखते ही गोली मारने की बात कही थी.
जब ये बात गांधीजी को पता चली तो वे खुद मिल मालिक की कोठी पर पहुंच गए और चौकीदार से बोले-उन्हें बता दो कि मैं आ गया हूं और अकेला हूं.
इसके बाद कोठी का दरवाजा नहीं खुला और मिल मालिक नहीं निकला.