बालाघाट से 30 KM दूर है "राम की नगरी", जहां है रेत का शिवलिंग और एक पैर के हनुमान जी
Jul 13, 2024
वनवास का समय
प्रभु राम 14 वर्ष के वनवास के दौरान अनेक स्थानों से होते हुए माता सीता को रावण से मुक्त कराने लंका गए थे. इस दौरान उन्होंने अनेक राक्षसों का वध किया और ऋषि-मुनियों एवं आमजनों की रक्षा की. मध्य प्रदेश में भी उन्होंने अनेक वर्ष व्यतीत किए, जिसमें बालाघाट जिले की रामपायली नगरी भी शामिल है.
रामपायली का इतिहास
रामपायली, जिसे "राम की नगरी" के नाम से भी जाना जाता है, का प्राचीन नाम रामपदावली था. यह बालाघाट से 30 किलोमीटर दूर स्थित है. कहा जाता है कि भगवान राम अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान यहां आये थे. यहां भगवान राम का 1625 ईसवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां साल भर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
चंदन नदी का किनारा
चंदन नदी के तट पर स्थित यह मंदिर किलेनुमा है. यहां भगवान राम और सीता की काले पत्थर की वनवासी प्रतिमा विराजमान है. मंदिर में रेत का शिवलिंग और लंगड़े हनुमान जी का भी मंदिर है. हनुमान जन्मोत्सव और कार्तिक पूर्णिमा में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
पाताल लोक में हनुमान जी का पैर
मंदिर के पुजारी गौरीशंकर दास वैष्णव के अनुसार, सैकड़ों साल पहले एक व्यक्ति को स्वप्न आया था जिसमें नदी में प्राचीन राम-सीता मूर्तियां और शिवलिंग होने की जानकारी मिली थी. बाद में इन मूर्तियों को निकालकर राम डोह नामक स्थान पर स्थापित किया गया. 1665 में नागपुर के राजा भोसले ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और 18वीं शताब्दी में इसका नवनिर्माण करवाया.
लंगड़े हनुमान जी
मंदिर में स्वयं प्रकट श्रीराम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा है, जिन्हें "लंगड़े हनुमान जी" के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि श्रीराम भक्त पूर्व मुखी हनुमान जी की मूर्ति का एक पैर जमीन पर और दूसरा पैर जमीन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता.
रेत का शिवलिंग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां स्थित रेत का शिवलिंग स्वयंभू है और सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करता है. चंदन नदी किनारे होने से रोजाना सूर्य की पहली किरण रेत के शिवलिंग को स्पर्श करते हुए भगवान राम के चरणों में गिरती है.
राम को काले बालाजी कहा जाता है
यहां भगवान राम को "काले बालाजी" के नाम से भी जाना जाता है.
विराध राक्षस का वध
रामपायली का श्रीराम बालाजी मंदिर भगवान राम के वनवास से जुड़ी अनेक मान्यताओं को समेटे हुए है. यहां ऋषि शरभंग का आश्रम था. वनवास के दौरान भगवान राम सीता माता के साथ दर्शन के लिए गए थे, लेकिन रास्ते में देवगांव में विराध नामक राक्षस का सामना करना पड़ा. राक्षस का वध करने के बाद उन्होंने ऋषि के दर्शन किए.