परमार राजवंश के संस्थापक उपेन्द्र कृष्णराज थे और धारानगर परमारों की राजधानी थी.
परमार क्षत्रिय परम्परा में अग्निवंशी के माने जाते हैं.
इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख में भी मिलती है.
ऐसा कहा जाता है कि परमार राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से हुई है.
अग्निकुंड से उत्पत्ति को सिद्ध करने वाली बात वाक्पतिकुंज के दरबारी कवि पद्मगुप्त द्वारा लिखित पुस्तक नवशांख चरित के विक्रम संवत 1031-1050 ई में मिलता है.
कहा जाता है कि आबू -पर्वत पर वशिष्ठ ऋषि रहते थे.
एक बार उनके गाय नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए थे.
इस बात से वशिष्ठ ऋषि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ.
उस वीर पुरुष ने शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया, प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा और उस के नाम पर वंश का नाम परमार हुआ.