अक्सर देखा जाता है कि मुसीबतों या फिर प्रेम में रहने के बाद लोग किसी न किसी की शायरियों को सुनना पसंद करते हैं, ऐसे लोगों को हम बताने जा रहे हैं मंजर भोपाली की शायरियों के बारे में जो आपको बेहद पसंद आ सकती है.
दहेज़
बाप बोझ ढोता था क्या दहेज़ दे पाता.
इस लिए वो शहज़ादी आज तक कुंवारी है.
गंदे आइने
ये किरदारों के गंदे आइने अपने ही घर रखिए.
यहां पर कौन कितना पारसा है हम समझते हैं.
पोशीदा
ख़ुद को पोशीदा न रक्खो बंद कलियों की तरह.
फूल कहते हैं तुम्हें सब लोग तो महका करो.
क़द्र-दान
इन आंसुओं का कोई क़द्र-दान मिल जाए.
कि हम भी 'मीर' का दीवान ले के आए हैं.
कैसा बदल गया
सफ़र के बीच ये कैसा बदल गया मौसम.
कि फिर किसी ने किसी की तरफ़ नहीं देखा.
ज़ख़्मों का बाब
हमारे दिल पे जो ज़ख़्मों का बाब लिक्खा है.
इसी में वक़्त का सारा हिसाब लिक्खा है.
आंख भर आई
आंख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई.
ख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई .
अदालत
आप ही की है अदालत आप ही मुंसिफ़ भी हैं.
ये तो कहिए आप के ऐब-ओ-हुनर देखेगा कौन.