'सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते'...पढ़िए रामधारी सिंह दिनकर की चुनिंदा पक्तियां

Harsh Katare
Nov 25, 2024

है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं जुगाना भी बलि एक बार ही नहीं उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते

जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है

सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है दो राह समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

डगमगा रहे हों पांव लोग जब हंसते हों, मत चिढ़ो,ध्यान मत दो इन छोटी बातों पर

आशा के स्वर का भार पवन को लेकिन लेना ही होगा जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा

जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार, क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार

शान्ति नहीं तब तक जब तक, सुख-भाग न नर का सम हो नहीं किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो

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