'झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं'...पढ़िए कैफी आजमी के चुनिंदा शेर

Harsh Katare
Nov 22, 2024

रोज़ बस्ते हैं कई शहर नए रोज़ धरती में समा जाते हैं

की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथ थोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ

रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ

झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं

मेरा बचपन भी साथ ले आया गाँव से जब भी आ गया कोई

तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद

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