कमाया जैसे उसी शान से उड़ाया भी, शकील आज़मी के खास शेर

Ansh Raj
Oct 15, 2024

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए

हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए कुछ हुनर चाहिए बाज़ार में रहने के लिए

इस बार उस की आँखों में इतने सवाल थे मैं भी सवाल बन के सवालों में रह गया

भूख में इश्क़ की तहज़ीब भी मर जाती है चाँद आकाश पे थाली की तरह लगता है

बात से बात की गहराई चली जाती है झूट आ जाए तो सच्चाई चली जाती है

जाने कैसा रिश्ता है रहगुज़र का क़दमों से थक के बैठ जाऊँ तो रास्ता बुलाता है

ख़ुद को इतना भी मत बचाया कर बारिशें हों तो भीग जाया कर

कमाया जैसे उसी शान से उड़ाया भी नोटों पर हमने कभी रबड़ नहीं बांधा

अपनी मंज़िल पे पहुँचना भी खड़े रहना भी कितना मुश्किल है बड़े हो के बड़े रहना भी

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