हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का... क्या आपने पढ़ें क़ाबिल अजमेरी के शानदार शेर

Ansh Raj
Dec 02, 2024

वो कब आएँ ख़ुदा जाने सितारों तुम तो सो जाओ हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए

हम ने उस के लब ओ रुख़्सार को छू कर देखा हौसले आग को गुलज़ार बना देते हैं

हम बदलते हैं रुख़ हवाओं का आए दुनिया हमारे साथ चले

तुम न मानों मगर हक़ीक़त है इश्क़ इंसान की ज़रूरत है

ज़माना दोस्त है किस किस को याद रखोगे ख़ुदा करे कि तुम्हें मुझ से दुश्मनी हो जाए

कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ 'क़ाबिल' ग़म-ए-दौराँ की अभी धूप कड़ी है

अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं अश्क बह जाते हैं लेकिन आँख तर होती नहीं

रास्ता है कि कटता जाता है फ़ासला है कि कम नहीं होता

वक़्त करता है परवरिश बरसों हादिसा एक दम नहीं होता

रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब चंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं

VIEW ALL

Read Next Story