बागपत पश्चिमी यूपी में यमुना नदी के पूर्वी तट पर बसा है. ये हरियाणा की राज्य सीमा से सटा है. दिल्ली से 45 किमी पूर्वोत्तर और मेरठ से 48 किमी पश्चिम में है.
इस क्षेत्र में बाघ पाए जाते थे. इसलिए इस नगर का मूल नाम 'व्याघ्रप्रस्थ' था यानी बाघ का नगर. महाभारत में भी इसे यही नाम दिया गया है.
ये उन पांच ग्रामों में से एक था जिसकी मांग भगवान कृष्ण ने हस्तिनापुर से पाण्डवों के लिए की थी. मुगल काल में इसका नाम बागपत लिखा गया.
बागपत में घूमने के लिए ऐसी जगहें हैं, जिसे देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जाएगा. जिनमें कई मंदिरें और ऐतिहासिक स्थल शामिल हैं. आइए जानते हैं.
बागपत के प्राचीन मंदिरों में से पुरा महादेव मंदिर है. माना जाता है कि यहां परशुराम ने शिवलिंग की स्थापना की थी और महादेव की तपस्या की थी.
परशुराम ने पिता के कहने पर अपनी मां का सिर काट दिया था. पश्चताप होने पर यहां तपस्या कर महादेव को खुश किया और उनकी मां जीवित हो गईं.
बड़ागांव में त्रिलोक तीर्थ धाम जैन धर्म की अस्था का केंद्र है. इस मंदिर की ऊंचाई 317 फीट है. जिसमें 100 फीट जमीन के नीचे और जमीन से ऊपर 217 फीट है.
बागपत में महाभारत काल के दिन का लाक्षागृह टीला आज भी देखने को मिलता है. जहां कौरवों ने पांडवों को जिन्दा जलाने की कोशिश की थी.
100 फीट ऊंचे और 30 एकड़ फैले टीले का अवशेष आज भी यहां देख सकते है. यहां उत्खनन के समय महाभारत, मौर्य, कुषाण, गुप्त, मुगलकाल के अवशेष देखे गए.
सरूरपुर कलां गांव में गुफा वाले बाबा एक पवित्र स्थान है. यहां शिव मंदिर भी देखा जा सकता है. जहां त्योहारों में लोग धार्मिक गतिविधियों के लिए बड़ी संख्या में आते हैं.
महर्षि वाल्मीकि मंदिर बालैनी में है. मान्यता है कि यहां लव-कुश की जन्मस्थली है. सीता मैया भी यहां समाई थीं. भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की लगाम भी यहीं थामी गई थी.