साल में केवल एक बार बांके बिहारी मंदिर में ही मंगला आरती करने का विधान है. जोकि जन्माष्टमी के दिन की जाती है.
बिहारी जी के चरणों के विग्रह के इस मंदिर में साक्षात दर्शन किए जा सकते हैं जोकि साल में केवल एक बार किया जा सकता है. अक्षया तृतीया को वो अवसर मिलता है.
बांके बिहारी मंदिर में हर दो पल में भगवान के सामने पर्दा डाला जाता है. कहते हैं कि भक्तों की भक्ति देखकर भगवान भी वशीभूत होकर उनके साथ न चले जाएं इससे रोका जाता है.
कहते हैं कि कि बांके बिहारी आज भी रात के समय निधिवन में आते हैं. बांके बिहारी जी के लिए भोग में हर रात एक लड्डू रखा जाता है जोकि सुबह के समय फूटा हुआ पाया जाता है.
बांके बिहारी के विग्रह में राधारानी व कृष्ण दोनों की छवि समाहित है जिससे विग्रह काले रंग का है. ऐसे में श्रृंगार आधा पुरुष व आधा स्त्री जैसे होता है.
बांके बिहारी जी के दर्शन पाते समय भक्त पलक भी नहीं झपका पाते क्योंकि उनकी आंखों में देखकर वो खो जाते हैं.
संत हरिदास ने भगवान कृष्ण को बांके बिहारी नाम दिया था और यह नाम झुकी हुई तीन कोण में मुद्रा के कारण से दिया गया.
बांके बिहारी के दर्शन पाते समय भक्तों की आंखों से स्वंय ही आंसू भर आते हैं.
यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.