द्रौपदी चीरहरण की कहानियां सबने सुनी होगी लेकिन क्या आपको पता है कि दुर्योधन और दुशासन का विरोध उसी के भाई ने किया था
ये सबने सुना होगा कि द्रौपदी चीरहरण के समय कर्ण ने पूरी सभा के सामने आकर इसका विरोध किया था.
लेकिन 100 कौरवों में एक दुर्योधन का भाई भी था जिसने चीरहरण का विरोध किया था. उसका नाम था विकर्ण
जब पांडू पुत्र युधिष्ठिर अपनी पत्नी को जुए में हार गए तो विकर्ण ने उन्हें द्रोपदी को सभा में लाने से मना किया था.
जब द्रोपदी का चीरहरण किया जा रहा था तब सभा में धृतराष्ट्र, भीष्म, द्रोणाचार्य, कुलगुरु कृपाचार्य जैसे महारथी थे लेकिन विकर्ण को छोड़कर किसी ने इसका विरोध नहीं किया.
महाभारत में युद्ध में विकर्ण पांडवों के साथ युद्ध लड़ना नहीं चाहते थे फिर भी उन्होंने भाई का धर्म निभाते हुए कौरव सेना का साथ दिया था.
धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से केवल विकर्ण ही थे जिन्होंने हमेशा कौरवों के द्वारा किए गए हर गलत काम का विरोध किया.
जब युद्ध के दौरान विकर्ण का सामना भीम से हुआ तो उन्होंने कहा कि चीर हरण के समय मेरा जो धर्म था वो मैने निभाया और अब रणभूमि में जो धर्म है वो निभा रहा हुं.
इसके बाद भीम और विकर्ण में भीषण युद्ध हुआ और अंत में भीम न चाहते हुए भी विकर्ण का वध करना पड़ा.