रामायण और श्रीराम के अस्तित्व पर आए दिन सवाल उठते रहते हैं. ऐसे में चीन ने भी उनके अस्तित्व को वास्तविक मान लिया है. उसने प्रभु श्रीराम के पद चिह्न खोजे हैं.
प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को चीनी स्कॉलरों ने बौद्ध धर्म में भी स्वीकार किया है. पहले नासा समेत कई अन्य रिपोर्ट में श्रीराम सेतु समेत अन्य प्रमाणों के जरिये श्रीराम के अस्तित्व को प्रमाणित किया गया था.
चीनी विद्वानों की मानें तो चीन के पास सदियों से बौद्ध धर्मग्रंथों में रामायण की कहानियों के पदचिह्न हैं, जो शायद पहली बार देश के उतार-चढ़ाव वाले इतिहास में हिंदू धर्म के प्रभाव को सामने ला रहे हैं.
लंबे समय से शोध से जुड़े कई चीनी विद्वानों ने उन ऐतिहासिक मार्गों का पता लगाया है, जिनके जरिये रामायण चीन तक पहुंची और चीनी लोगों पर इसका प्रभाव पड़ा.
7वीं शताब्दी के चीनी विद्वान जुआनज़ैंग भारत आए थे. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था और अपने तीर्थयात्रा के दौरान सुनी गई रामायण कहानियों का विस्तृत विवरण वाले कई बौद्ध धर्मग्रंथ वापस लाए थे.
रामायण की हिंदू पृष्ठभूमि और चीन में बौद्ध धर्म की प्रबलता की वजह से इसके पाठ का न तो पूरी तरह से अनुवाद हुआ और न ही हान संस्कृति में व्यापक रूप से प्रसारित किया गया.
1980 में संस्कृत से रामायण का पहला चीनी अनुवाद जी जियानलिन ने किया था. विद्वानों की मानें तो ये अनुवाद चीनी शिक्षा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण सफलता थी.
कहा जा रहा है कि चीन ने भी इस महाकाव्य के तत्वों को आत्मसात किया है, जिसने न केवल चीनी (बहुसंख्यक) हान संस्कृति में निशान छोड़े, बल्कि चीनी ज़िज़ांग (तिब्बती) संस्कृति में भी इसकी पुनर्व्याख्या की और नए अर्थ दिए.
चीन में रामायण से संबंधित सबसे प्रारंभिक सामग्री मुख्य रूप से बौद्ध धर्मग्रंथों के माध्यम से हान सांस्कृतिक क्षेत्र में पेश की गई थी. हालांकि, इसे हान सांस्कृतिक क्षेत्र में एक पूर्ण कार्य के रूप में शामिल नहीं किया गया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रामायण महाकाव्य के कुछ हिस्सों को बौद्ध धर्मग्रंथों में शामिल किया गया था, जिसमें दशरथ और हनुमान जैसे प्रमुख व्यक्तियों को बौद्ध पात्रों के रूप में जाना गया था.
रिपोर्ट्स में हनुमान को वानरों के राजा के रूप में दिखाया गया था, जो क्लासिक बौद्ध नैतिक आख्यानों में मिश्रित था और जो बौद्ध शिक्षाओं का पालन करते थे.
"रामायण- एक कालातीत मार्गदर्शिका" संगोष्ठी में संग्रहालय क्वानझोउ में विभिन्न हिंदू देवताओं की एक विस्तृत विविधता की तस्वीरें प्रदर्शित की गईं. विद्वानों की मानें तो बहुआयामी भारतीय संस्कृति - बौद्ध और गैर-बौद्ध दोनों - ने चीनी धरती पर अपनी छाप छोड़ी"
तिब्बत में रामायण के प्रभाव का अधिक व्यापक और दीर्घकालिक इतिहास है, जहां इसे पहली बार तुबो साम्राज्य की अवधि के दौरान पेश किया गया था. रामायण न केवल तिब्बती विद्वानों के बीच अध्ययन का विषय बना, बल्कि आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय हुआ.