हजारों साल 'लव-मैरिज' जैसा कोई शब्द नहीं था लेकिन प्रेम विवाह जरूर हुआ करता था.
अपने घर से जो लोग चोरी-छिपे भागकर विवाह करते थे वो गंधर्व विवाह कहलाता था जिसमें घरवालों की अनुमति की जरूरत नहीं होती थी.
ऐसी शादी में पवित्र अग्नि को साक्षी माना जाता था और तीन फेरे ले लिए जाते थे.
हिन्दू धर्म में विवाह को केवल विवाह नहीं बल्कि सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है.
हजारों साल पहले से ही विवाह की परम्परा वैदिक काल से शुरू हो चुकी थी और इस तरह समाज सभ्य होता चला गया.
शास्त्रों की माने तो विवाह आठ तरह के होते हैं. ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस व पिशाच.
इन सभीआठ विवाह में से मान्यता ब्रह्म विवाह को ही दी गई है. बाकि सभी विवाह धर्म के सम्मत नहीं कहा गया है.
प्राचीन काल में देव विवाह को भी मान्यता दी गई थी. वहीं प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस व पिशाच विवाह को अशुभ माना गया है.