नवाब फैजुल्ला खां ने इल्म की रोशनी फैलाने के लिए 250 साल पहले जो पौधा लगाया था वह ज्ञान का विशाल वट वृक्ष बन चुका है। इसे अब रजा लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है। इस लाइब्रेरी में 17 हजार पांडुलिपियां और 60 हजार किताबें संग्रहीत हैं। इसके बारे में दावा किया जाता है यह एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है.
नवाब फैजुल्ला खान, जिन्होंने 1774 से 1794 तक रामपुर पर शासन किया, ने 1774 में प्राचीन पांडुलिपियों और इस्लामी सुलेख के लघु नमूनों के अपने निजी संग्रह से पुस्तकालय की स्थापना की थी.
यह लाइब्रेरी उत्र प्रदेश के रामपुर जिले में स्थित है जो मुरादाबाद मंडल के अंतर्गत में आता है .
पुस्तकालय में पांडुलिपियों, लघु चित्रों, इस्लामी सुलेख और खगोलीय उपकरणों के नमूने आदि का एक मूल्यवान संग्रह है.पुस्तकालय में भारतीय स्थानीय भाषाओं तेलुगु, संस्कृत, हिंदी, कन्नरह, सिंहली और तमिल आदि में ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां भी हैं.
रामपुर के आखिरी नवाब रजा अली खां के पुत्र जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां से बेगम नूरबानो की शादी 1956 में हुई थी . उन्होंने अपनी बेटी को दहेज के रूप में पांच हजार किताबें दी थीं .
आजादी के बाद राज्यों के भारत संघ में विलय के बाद लाइब्रेरी को न्याय के प्रबंधन के अधीन कर दिया गया, जिसका सृजन 6 अप्रैल, 1951 को किया गया. इस पुस्तकालय को 1 जुलाई, 1975 को एक संसद अधिनियम के अधीन कर दिया गया था .
लाइब्रेरी कैटलॉग जनता की खोज के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है. पुस्तकालय अपने संग्रहों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में है और बहुत जल्द उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराएगा.
विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकों का संग्रह रज़ा लाइब्रेरी में उपलब्ध है .