मात्र 4 साल की उम्र में रवींद्र जैन के पिता ने उनके लिए घर में संगीत सीखने की व्यवस्था की. दरअसल, रवींद्र जैन गायक के साथ ही संगीत के शिक्षकों के तौर पर कोलकाता में काम कर चुके है.

रवींद्र जैन एक ऐसी शख्सियत का नाम था जिसने संगीतकार, गीतकार और गायक के रूप में हिंदी सिनेमा को कई बेशुमार सदाबहार गाने दिए. एक समय था जब संगीतकार रवींद्र जैन को देश के पांच रेडियो स्टेशनों में ऑडिशन के दौरान नकार दिया गया.

1973 में आई राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'सौदागर' ने रवींद्र जैन की किस्मत के दरवाजे खोल दिए. इसके बाद 'चोर मचाए शोर'में रवींद्र को मौका मिला. अंखियों के झरोखे से ( 1978), गीता गाता चल (1975) और दुल्हन वही जो पिया मन भाए (1977), नदिया के पार (1982) तक रवींद्र जैन ने हिंदी सिनेमा को बेहद रसपूर्ण गाने दिए.

साल 1985 में फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में संगीत देने के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक और 1991 में फिल्म 'हिना' के गीत 'मैं हूं खुशरंग हिना' के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. रवींद्र जैन ने धारावाहिकों जैसे रामायण में संगीत दिया और गीत भी लिखा.

रवींद्र जैन ने कुरान का अरबी भाषा से सहल उर्दू जबान में अनुवाद किया. उन्होंने श्रीमद्भगवत गीता का सरल हिंदी पद्यानुवाद भी किया. जैन ने श्रीमद्भ भागवतम, सामवेद और उपनिषदों का सरल हिंदी में अनुवाद कर रहे थे, लेकिन वक्त ने साथ नहीं दिया..

दो सालों की किडनी की बीमारी के बाद 9 अक्टूबर साल 2015 को उनका निधन हो गया.

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