हिंदू पंचांग के अनुसार होली के 8 दिन बाद शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है. इसे बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. इस बार शीतला अष्टमी का व्रत 2 अप्रैल को रखा जाएगा.
शीतला अष्टमी के दिन मुख्य रूप से माता शीतला की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. इस तिथि पर देवी को बासी भोजन का भोग भी लगाया जाता है. आइए, जानते हैं कि ऐसा करने की पीछे क्या कारण है.
वे अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं. मां गर्दभ की सवारी किए वे अभय मुद्रा में विराजमान हैं.
शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना गया है. इनकी पूजा करने से रोग दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि मां की कृपा से ही व्यक्ति निरोगी होकर सुखी जीवन जीता है.
बासोड़ा पर्व की परंपरा के अनुसार, इस दिन घरों में भोजन पकाने के लिए अग्नि का इस्तेमाल नहीं किया जाता. सप्तमी को भोजन तैयार किया जाता है.
इसलिए बासोड़ा से एक दिन पहले भोजन जैसे मीठे चावल, राबड़ी, पुए, हलवा, रोटी आदि पकवान तैयार कर लिए जाते हैं.
अगले दिन सुबह बासी भोजन ही देवी शीतला को चढ़ाया जाता है. इसके बाद इसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि शीतला माता को ठंडी चीजें बहुत प्रिय हैं. इस दिन उनके लिए चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं.
ये दिन ऋतु परिवर्तिन का भी संकेत देता है. ऐसा कहते हैं कि इस अष्टमी के बाद बासी खाना नहीं खाया जाना चाहिए.
शीतला अष्टमी का वैज्ञानिक महत्व भी है. यह पर्व उस समय मनाया जाता है, जब शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का समय होता है. यह दो ऋतुओं का संधिकाल है.
इस मौसम में ठंडा खाना खाने से पाचन तंत्र ठीक रहता है. ऐसे में शीतला अष्टमी पर ठंडा खाना खाया जाता है.
यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.