इस्लाम में पांच फर्ज बताये गए हैं. कलमा, रोजा, नमाज, जकात और हज. मुसलमानों को सभी फर्जों का पालन करना अनिवार्य है.
मुसलमान 5 बार नमाज पढ़ते हैं. सुबह की नमाज़ को फ़जर, दोपहर को ज़ोहर, शाम से पहले असर, शाम के वक्त मग़रिब और आधी रात से पहले पढ़ी जाने वाली नमाज़ को इशा की नमाज़ कहा जाता है.
किसी कारणवश अगर कोई रोजाना नमाज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा हो, जुम्मे को अल्लाह की इबादत करनी होती है.
इस्लाम धर्म में शुक्रवार के दिन को जुम्मे का दिन कहा जाता है, और जुम्मे का बहुत महत्व है. जानकारों के अनुसार जुम्मे के दिन को अल्लाह के दरबार में रहम का दिन माना जाता है.
मान्यताओं के अनुसार जुम्मे के दिन का चुनाव स्वयं अल्लाह ने किया था, उन्होंने इस दिन को हफ्ते का सर्वश्रेष्ठ दिन बताया था
मान्यता है कि इस दिन नमाज पढ़ने वाले इंसान की पिछले पूरे हफ्ते की गलतियों को अल्लाह माफ कर देता है.
इस दिन को सौहार्द यानी भाईचारे को समर्पित दिन भी माना जाता है. इसीलिए इसे जुमाया प्रार्थना भी कहा जाता है.
शुक्रवार को एक-दूसरे के साथ जुड़ने का दिन बताया गया है ताकि लोग एकता दिखा सकें.
जुमे की नमाज़ की शर्त यह भी होती है कि ये एकसाथ मिल-जुलकर पढ़ी जाती है. इसे अकेले नहीं पढ़ा जा सकता है.
कोई जुमे की नमाज़ नहीं पढ़ पाता है तो उसको ज़ोहर की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है क्योंकि इस्लाम में नमाज़ छोड़ी नहीं जा सकती है.
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