सनातन धर्म में प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है.
दिवाली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन भगवान राम चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण करके और लंका पर विजय प्राप्ति करके अयोध्या वापस लौटे थे.
इसलिए उनकी प्रजा ने घी के दीपक प्रज्लित करके खुशियां मनाई थी.
यही कारण है कि दीपावली की रात में घी के दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं.
एक अन्य मत के अनुसार दिवाली की रात्रि मां लक्ष्मी का पृथ्वी लोक पर आगमन होता है और वे भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं. जिससे वर्ष भर घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती.
इस दिन मुख्य रूप से मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन किया जाता है और उनको मुख्य भोग प्रसाद के रूप में खील व बताशे चढ़ाए जाते हैं.
क्या आप जानते हैं कि दिवाली पर मां लक्ष्मी को खील और मीठे बताशों या मीठे खिलौनो का भोग क्यों लगाया जाता है. जानिए इसके पीछे का कारण.
खील चावलों से बनाकर तैयार किया जाता है. दिवाली के समय धान की फसल पककर तैयार हो जाती है इसलिए धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की आभार व्यक्ति करने के लिए धान का लावा यानी खीलों अर्पित किए जाते हैं.
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं को भोग में कुछ मीठा अवश्य अर्पित किया जाता है इसलिए खीलों के साथ मीठे खिलौने या फिर बताशे का भोग लगाया जाता है.
ज्योतिष में चावल को शुक्र का अनाज माना गया है और शुक्र को धन, वैभव का कारक ग्रह माना जाता है.
मां लक्ष्मी भी धन-समृद्धि प्रदान करने वाली देवी हैं व इनके पूजन से शुक्र मजबूत होता है. इसी के साथ चावल को शुद्ध पदार्थ माना जाता है, इसलिए दिवाली पर खील और बताशे चढ़ाए जाते हैं.
दी गई जानकारी दूसरे विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई, हम इसकी पुष्टि नहीं करते.