वाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ के श्राद्ध से जुड़ा एक किस्सा बताया गया है जो कि माता सीता द्वारा राजा दशरथ के पिंडदान से जुड़ा हुआ है.
बताया जाता है कि वनवास के दौरान भगवान राम, सीता माता और लक्ष्मण पितृ पक्ष के समय श्राद्ध करने के लिए बिहार के गया धाम पहुंचे थे.
श्राद्ध-
श्राद्ध की विधि में प्रयोग होने वाली आवश्यक सामग्री को जुटाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए.
निर्णय-
तब माता सीता ने निर्णय लिया कि उनके पास जो मौजूद साम्रगी है उससे ही वे खुद राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी.
इन लोगों को बनाया साक्षी-
श्राद्ध कर्म की विधि को करते समय मात सीता ने वहां मौजूद वटवृक्ष, कौवे, केतकी के फूल और गाय को साक्षी बनाया.
पिंडदान -
पिंडदान सफलतापूर्वक होने के बाद जब दोनों भाई वापस लौटे तो माता सीता ने उन्हें पूरी बात बताई.
साक्ष्य-
माता सीता ने साक्ष्य के रूप में वटवृक्ष, कौवे, केतकी के फूल और गाय से प्रमाण देने के लिए कहा. तब वटवृक्ष को छोड़कर सबने झूठी गवाही दी.
श्राप-
फल्गू नदी को बिना पानी के रहने, गाय को श्राप दिया की पूज्यनीय होने के बाद भी तुम जूठा खाओगी, केतकी के फूल को किसी भी पूजा में वर्जित रहने का और कौवे को आकस्मिक मृत्यु का श्राप दिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)