वोटिंग के दौरान उंगली पर लगने वाली नीली स्याही का फॉर्मूला आज भी सीक्रेट, जानें चुनाव से जुड़े अनोखे फैक्ट

साल 1951 में, स्वतंत्रता प्राप्त करने के ठीक पांच साल बाद, भारत में पहली बार आम चुनाव आयोजित किए गए थे. भारत को इससे पहले चुनाव आयोजित करने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए नवगठित चुनाव आयोग को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था.

भारत के पहले आम चुनाव में बड़े पैमाने पर निरक्षर मतदाताओं ने परेशानियों को काफी बढ़ा दिया था, लेकिन चुनाव आयुक्त ने अपनी सोच से इस चुनाव को एक शानदार सफलता में बदल दिया और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखी.

भारत के पहले आम चुनाव के दौरान ही 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को सामान मताधिकार प्रदान किया, जिससे वे अपना प्रतिनिधि चुन सके. हालांकि, 1989 में वोट डालने वाले लोगों की आयु 21 से घटाकर 18 कर दी गई.

भारत में जहां आजादी के तुरंत बार यहां के नागरिकों को वोट डालने का अधिकार मिल गया था, वहीं अमेरिका जैसे विकसित देश में, अफ्रीकी अमेरिकियों को वोट देने का अधिकार पाने के लिए लगभग 100 वर्षों तक और महिलाओं को स्वतंत्रता के बाद लगभग 150 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा था.

भारत के पहले चुनाव आयुक्त (Election Commissioner) सुकुमार सेन थे, जिन्होंने चुनावी प्रक्रिया की देखरेख और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

पहले आम चुनाव के दौरान जो लोग पढ़-लिख नहीं सकते थे, उनके लिए चीजें आसान बनाने के लिए राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न डिजाइन और अलॉट किए गए, जिससे मतदान प्रक्रिया की पहुंच और समावेशिता में वृद्धि हुई.

दोहरे मतदान जैसी चुनावी धोखाधड़ी को रोकने के लिए वोट डालने वालों की उंगलियों पर निशान लगाने के लिए फोटोसेंसिटिव अमिट स्याही डेवलप की गई थी. बता दें कि आज तक इस स्याही को बनाने का स्पेशल फॉर्मूला पब्लिक नहीं किया गया है.

भारत में पहली बार बैलेट बॉक्स (Ballot Box) बंबई के एक उपनगर विक्रोली में स्ठित एक फैक्ट्री में बनाया गया था. इसकी एक यूनिट को बनाने में 5 रुपये की लागत आई थी

इन बैलेट बॉक्स ने मतदाताओं को गोपनीय रूप से वोट डालने का साधन प्रदान करके निष्पक्ष और सुरक्षित चुनाव कराने में महत्वपूर्ण थीं. इन बैलेट बॉक्स को ट्रेनों, कारों, ऊंटों और यहां तक कि हाथियों सहित विभिन्न माध्यमों से देश के सुदूर हिस्सों तक पहुंचाया गया था.

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